आज हर जगह कांग्रेस सरकार में हुए घोटालो की चर्चा है. सुना था की पैसो में गर्मी कुछ ज्यादा होती है शायद यही कारण है की नोटों की गर्मी के आगे जहां बिहार की चुनावी तपत फीकी लग रही है वही संघ-कांग्रेस भी अपनी लड़ाई भूल गई है. नेता तो नेता जनता भी सोच रही है जब नेताओ ने घोटालो के पैसो की इतनी गर्मी खाई है तो हम भी कुछ हाथ सेंक ले. भले ही जनता के हाथ कुछ ना लगे लेकिन मुद्दा तो मुद्दा है. खबरिया चैनल भी कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटाले को भूल गए तो कांग्रेस भी संघ के पूर्व सरसंघ चालक सुदर्शन द्वारा सोनिया गाँधी को सीआईए का एजेंट कहे जाने को भूलती नजर आ रही है. इससे पहले जहां संघ नेताओ का आतंकवादी घटनाओं में हाथ बताने को लेकर कांग्रेस चर्चा में थी तो वही सुदर्शन द्वारा सोनिया गांधी को सीआईए एजेंट कहने पर कांग्रेस ने खूब बवाल मचाया. दोनों ही तरफ से धरने-प्रदर्शनों का दौर चला. जनता ने भी सभी समाचार खूब दिल से सुने और पढ़े. लेकिन एक के बाद एक घोटालो के उजागर होने से आज कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है वही भाजपा को भी बड़ा मुद्दा मिलने से संघ भी चुप हो गया है.
रही बात घोटालो की तो जिस तरह से पहले कॉमनवेल्थ गेम्स फिर महाराष्ट्र के आदर्श हाउसिंग सोसाईटी और अब 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले में सरकार घिरी नजर आ रही है उसे देख तो यही लगता है की यह सभी घोटाले कांग्रेस सरकार में नहीं अपितु घोटालो में कांग्रेस सरकार है. कहने का भाव यह है की यह सभी घोटाले कांग्रेस सरकार में नहीं हुए. अगर ऐसा होता तो किसी भी एक घोटाले के पश्चात सरकार नहीं तो उसका कोई मंत्री-संतरी तो अवश्य कुछ बोलता लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटाले में दिल्ली सरकार की चुप्पी जहां चिंताजनक रही वही केंद्र और सोनिया गाँधी का मौन देश के लिए दुखदायी था. उसके पश्चात महाराष्ट्र जमीन घोटाले के पश्चात मुख्यमंत्री अशोक चव्हान की छुट्टी करने में हुई देरी में भी कहीं ना कहीं कांग्रेस सरकार ही दोषी थी. इन सब के पश्चात बात शुरू हुई 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले की तो देश और राजनितिक पार्टियों में घमासान ही मच गया. रही सही कसर सर्वोच्च न्यालय ने प्रधानमन्त्री से जवाब मांग कर पूरी कर दी. देश के आला नेता प्रधानमन्त्री से जवाब मांगने को शर्म की बात बोल कर राजनीति कर रहे है.
कहते है की नेताओ को तो राजनितिक रोटिया सेंकने का मौका चाहिए. तो भला इससे अच्छा मौका कब और कैसे मिल सकता है. अब तो केंद्र सरकार के साथ रहने वाले लालू-मुलायम भी 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले में प्रधानमंत्री से जवाब मांगने लगे है. अब सबकी नजर देश के युवराज राहुल गाँधी पर टिकी थी की कब वो कुछ बोले और यह मुद्दा किसी तरफ शांत हो जाएँ. अक्सर राहुल गाँधी कांग्रेस के लिए भगवान् साबित हुए है. तो आखिरकार यह मौका भी आ गया लेकिन अबकी बार वो जो कुछ भी बोले वो मेरी समझ में नहीं आया. इसके कई कारण है लेकिन अगर मै एक पत्रकार की नजर से देखूं तो यह ब्यान सिर्फ प्रधानमन्त्री के बचाव में था ना की देश हित में. उन्होंने कहा की अदालत द्वारा प्रधानमन्त्री से जवाब माँगना कोई शर्म की बात नहीं है. शायद सही कहा उन्होंने. जब नेता बेशर्म हो कर देश का अरबो-खरबों रुपया खा सकते है तो जवाब देने में शर्म कैसी. फिर भले ही इससे पहले ऐसा हुआ हो या नहीं. लेकिन उनकी यह टिप्पणी इतना जरुर स्पष्ट कर गई की वाकई आज किसी नेता को जनता के हितो से कोई सरोकार नहीं है.
इन सभी घोटालो में सरकार ही है इससे अच्छा उदहारण और क्या हो सकता है की सरकार शुरू से ही अपने लोगो का बचाव करती रही. चाहे वो कलमाड़ी हो या फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हान. जबकि राजा के मुद्दे पर क्या कुछ हुआ वो सभी ने देखा और सुना. अभी हाल ही में राजस्थान के भाजपा नेताओ ने सरकारी दस्तावेजो के साथ यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है की कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए राजस्थान के पूर्व राज्यपाल के पुत्र को 2000 करोड़ रूपए की राशी बेवजह दी गई. इससे पहले भी जो नाम उजागर हुए है वो सभी सरकार के ही नुमाइंदे है. कुल मिला कर अगर यह कहा जाये की कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटाले में हर स्तर के नेताओ का मुहं बंद करने के लिए मोटी रकम दी गई थी तो गलत नहीं होगा. जबकि प्रतिदिन लाखों रुपया खर्च कर चलने वाली संसद की कार्यवाही भी भ्रष्टाचार और घोटालो की भेंट चढ़ रही है. लेकिन कांग्रेस व् सरकार के कानो पर जूं तक नहीं रेंग रही. जब नेताओ की ही नहीं सूनी जा रही तो भले ही जनता कुछ भी बोलती रहे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि जब नेताओ का पेट भरा हो तो जनता की सुनता कौन है.
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बुधवार, 24 नवंबर 2010
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सही है जनता की कोई नहीं सुनता..
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