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बुधवार, 8 जून 2011

ये कैसा लोकतंत्र है ?

लोकतंत्र का अर्थ क्या है ? यही न कि आपको कहने की , रहने की ,जीने की आज़ादी है .आप शांतिपूर्ण ढंग से अपनी असहमति जता सकते हैं . आप न्याय की अपील कर सकते हैं , आप दोषी की तरफ ऊँगली उठा सकते हैं .आपको कोई बेजा तंग नहीं कर सकता .प्रशासन आपका रक्षक है .
लेकिन क्या महान देश भारत में ऐसा हो रहा है ? चार जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में योगगुरु रामदेव के धरने पर रात के एक बजे पुलिस बल का प्रयोग क्या लोकतान्त्रिक देश को शोभा देता है ? क्या यह इस बात की और इंगित नहीं करता कि कांग्रेस सरकार एक असहनशील सरकार है ? क्या यह इंदिरा गाँधी के आपातकाल की पुनरावृति नहीं ?
हालांकि सरकार का तर्क है कि रामदेव ने सहमती पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे . ऐसे में प्रदर्शन समाप्त होना चाहिए था . अगर इस बात को सच मान भी लिया जाए तो भी सरकार की बर्बरता पूर्ण कार्यवाही को उचित नहीं ठहराया जा सकता . सरकार को पत्र मीडिया के जरिये जनता के सामने लाना चाहिए था . दूध का दूध और पानी का पानी हो जाने का इंतजार करना चाहिए था .
सरकार की इस कार्यवाई को तब तो सही ठहराया जा सकता था ,जब प्रदर्शनकारी कोई हिंसक गतिविधि कर रहे होते .यह आन्दोलन तो शांतिपूर्ण तरीके चल रहा था और फिर जिस समय पुलिस बल का प्रयोग किया गया उस समय आंदोलनकारी सो रहे थे . सोये हुए लोगों पर तो युद्ध में भी बार नहीं किया जाता . निहत्थों पर बार कायरता की निशानी है और कांग्रेस सरकार ने ऐसा करके लोकतंत्र को शर्मसार किया है . अगर केंद्र सरकार को ताकत दिखाने का इतना ही शौक है तो उसे आंतकवादी संगठनों के खिलाफ ताकत दिखाकर लोकतंत्र की रक्षा करनी चाहिए . देश की संसद पर हमला करने वाले आंतकवादी तो सरकारी मेहमान बने बैठे हैं और सरकार उनको कुचल रही है जो देश से भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं , जो काले धन को देश में लाने की बात करते हैं
केंद्र सरकार के इस निंदनीय कृत्य की भर्त्सना करना देश के नागरिकों का कर्तव्य बनता है . यदि इस समय ऐसा नहीं किया गया तो देश में लोकतंत्र की हत्या संभव है।


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