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सोमवार, 28 सितंबर 2009

कहीं रावण का पुतला जले तो कहीं कारीगर का दिल



दशहरा पर्व पर जब रावण व मेघनाथ के पुतलों को आग लगाई जाती है तब एक तरफ सभी लोग खुशियां मनाते हैं वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने आंसुओं को रोक नहीं पाता। धू-धूकर जलने वाले रावण व मेघानाथ के पुतलों को देखकर रोने वाला यह व्यक्ति इन्हीं पुतलों का डेढ़ माह में निर्माण करने वाला है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जंक्शन निवासी रमेश कुमार मेहरा से हुई विशेष बातचीत में बताया कि वह पिछले 25 वर्षो से दशहरा पर्व पर जलाए जाने वाले पुतलों को बनाने का काम कर रहा है। उसने बताया कि इन पुतलों को बनाने में उसे डेढ़ माह का समय लगता है और जब उसके द्वारा बनाई गई कला कुछ ही मिनटों में जलकर राख हो रही होती है तब उसे अपनी कला को जलते हुए देखकर दर्द होता है। उसने कहा कि इस बार वह सिरसा में आयोजित होने वाले दशहरा समारोह के लिए जो पुतले तैयार कर रहा है उसमें नया अंदाज दिया है। उसने बताया कि इस बार जहां मेघनाथ की गर्दन चारों और घूमेगी वहीं दो ढाले भी लगातार घूमती रहेंगी। इस बार रावण तथा मेघनाथ के पुतलों को आग लगाने के लिए हनुमान उड़कर आएगा। यह इस समारोह में देखने योग्य दृश्य होगा। श्री रामा क्लब चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा इस बार 60वां दशहरा पर्व मनाया जा रहा है। इसी क्लब के तत्वावधान में पुतलों का निर्माण करवाया जा रहा है जिनकी लागत लगभग एक लाख रुपये होगी। इस बार रावण का पुतला 65 फुट, मेघनाथ का 60 फुट व लंका 24 फुट ऊंची बनाई गई है। कारीगर रमेश मेहरा ने बताया कि पिछले डेढ़ माह से इस काम में जुटा हुआ है और अब इन पुतलों का निर्माण कार्य अंतिम कड़ी में चल रहा है। उसने बताया कि दशहरा पर्व से एक-दो दिन पूर्व ही वह अपने काम को मुकम्मल कर लेगा। इन पुतलों के बनाने में उसे 20 हजार रुपये मेहनताना मिलेगा। दशहरा पर्व के पश्चात रमेश मेहरा फिर से दिनचर्या के कार्य स्टोव, गैस की मरम्मत कार्य में जुट जाएगा। उसने बताया कि चार पीढि़यों से उनका परिवार दशहरा पर्व पर पुतले बनाने का कार्य कर रहा है। उसने बताया कि पुतलों के निर्माण में कागज, पुरानी साड़ियां, सूतली, सन, मैदा, नीला थोथा, फोम, रंगीन कागज, कांगड़ा, डंक पन्नी, बांस आदि सामान का प्रयोग किया जाता है।

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