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मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009

आयुर्वेदिक दवाओं पर होगा गारंटी का सरकारी ठप्पा


( डॉ सुखपाल)-मुनाफाखोर कंपनियां कहीं हमें आयुर्वेद के नाम पर बेवकूफ तो नहीं बना रहीं! फिल्मी सितारों के विज्ञापन और लुभावने ऑफर्स के साथ आ रहे आयुर्वेदिक उत्पादों को देख कर ये सवाल ज्यादातर लोगों के मन में उठ रहा होता है। लेकिन अब जल्दी ही आप क्वालिटी की गारंटी का सरकारी ठप्पा देखकर आयुर्वेदिक दवाएं खरीद सकेंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष (आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी) विभाग ने 641 तरह की दवाओं के फार्मूले तय कर लिए हैं। इनमें आयुर्वेदिक उत्पादों में सबसे ज्यादा बिकने वाला च्यवनप्राश भी शामिल है। अब अगले कदम के तौर पर सरकार दवा बनाने वाली कंपनियों की जांच शुरू करने जा रही है। आयुष की सचिव एस जलजा ने बताया कि आयुष ने भारतीय मानक परिषद (क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया) के साथ मिल कर दवा निर्माताओं के लिए एक विशेष योजना शुरू की है। इसके तहत निर्माता अपनी निर्माण प्रक्रिया की जांच करवा कर आयुष का क्वालिटी मार्क हासिल कर सकता है। शुरुआत में यह सर्टीफिकेशन योजना पूरी तरह स्वैच्छिक है। क्वालिटी काउंसिल के विशेषज्ञ दवा निर्माता के परिसर की जांच करेंगे और अगर वह आयुष के मानकों का पूरी तरह पालन करता पाया गया तो उसे सरकारी ठप्पा लगाने का हक मिल जाएगा। आयुर्वेद की लोकप्रिय दवा च्यवनप्राश के बारे में पूछे जाने पर वे कहती हैं कि इसमें लगभग 52 तरह के अवयव मिले होते हैं, लेकिन जिन दवाओं का फार्मोकोपिया या फार्मूला तैयार किया गया है, उसमें यह भी शामिल है। जलजा कहती हैं कि उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी बड़ी और मझोली कंपनियां भी इस तरह की मान्यता के लिए आगे आएंगी। आयुर्वेद की दवाओं का लगभग दो सौ करोड़ का सालाना कारोबार करने वाली दिव्य फार्मेसी के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण का मानना है कि अब भी आयुर्वेदिक दवाओं को कई देशों में दवा की बजाय हर्बल या फूड प्रॉडक्ट के नाम पर बेचना होता है। इसकी वजह अपने यहां इसके मानकीकरण पर काम न होना है। उनके मुताबिक सरकार का यह प्रयास बेहद देर से उठाया गया लेकिन सराहनीय कदम है। मगर सरकार को यह देखना होगा कि इस प्रक्रिया में कहीं वो वैद्य न मारे जाएं जो अपने ज्ञान के आधार पर बहुत छोटे स्तर पर सबसे विश्वसनीय दवाएं बना रहे हैं। अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के अध्यक्ष और प्रसिद्ध वैद्य देवेंद्र त्रिगुणा कहते हैं कि खास कर विदेशों में आयुर्वेदिक दवाओं को व्यापक स्वीकृति दिलाने के लिए यह बेहद जरूरी है। त्रिगुणा के मुताबिक निर्माण के साथ-साथ इसकी बिक्री करने वालों की जांच भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

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