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शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009

नक्सली भी वोटर कार्ड की जुगत में


( डॉ सुखपाल)-

नक्सलियों के खिलाफ सरकार की जंग सरीखी तैयारियों से छत्तीसगढ़ और झारखंड के सैकड़ों गांवों में भय और आतंक पसरा हुआ है। नक्सल प्रभावित इलाके में आने वाले गांवों में लोग सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच पिसने से बचने के उपाय खोज रहे हैं। खुद को सुरक्षा बलों के कहर से बचाने के लिए ग्रामीण वोटर कार्ड और राशन कार्ड को कवच के रूप देख रहे हैं। वहीं, खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि सुरक्षा बलों को भरमाने और दबाव बनाने के लिए जंगलों से भागकर आए नक्सली तो कहीं सरकारी पहचान पत्र हासिल करने की होड़ में नहीं जुट गए हैं। दरअसल, जब से केंद्र की नक्सलियों के खिलाफ समग्र अभियान की तैयारियां तेज हुई हैं, तभी से छत्तीसगढ़ और झारखंड में वोटर कार्ड बनवाने वालों की खासतौर पर होड़ लग गई है। लोकतंत्र के विरोधी नक्सलियों के राज में रहने वाले ज्यादातर ग्रामीण मतदान से दूर ही रहते रहे हैं। जन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते भी आदिवासियों और ग्रामीणों ने अब तक राशन कार्ड बनवाने की नहीं सोची थी। मगर अभियान की तैयारियों में आई तेजी के बाद ग्रामीण ताबड़तोड़ तरीके से सरकारी पहचान पत्र पाने के लिए सरपंचों के साथ-साथ सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने लगे हैं। ग्रामीणों में खासतौर से वोटर कार्ड बनवाने की मची इस होड़ पर राज्य व केंद्र सरकारों का ध्यान गया। इसकी पड़ताल की गई तो गांव के सरपंचों और ग्रामीणों का कहना था कि सरकार की जंग सरीखी तैयारियों से भयभीत ग्रामीण कागजी तौर पर पुख्ता हो लेना चाहते हैं। दरअसल, ग्रामीणों की सोच है कि अगर वोटर कार्ड होगा तो वे तलाशी दल के सामने अपनी पहचान के साथ-साथ लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था प्रगट कर सकेंगे। चूंकि, नक्सली लोकतंत्र या मतदान का विरोध करते रहे हैं, इसलिए ग्रामीणों को लग रहा है कि वे वोटर कार्ड दिखाकर यह साबित कर देंगे कि उनका नक्सलियों से कोई लेना-देना नहीं है। खुफिया एजेंसियां इस पहलू से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सलियों की हरकतों पर नजर रखे आईबी के सूत्रों के मुताबिक, यह माओवादियों की चाल भी हो सकती है। अभियान के मद्देनजर नक्सलियों के गांवों और शहरों में आ जाने की सूचनाएं पहले ही आ चुकी हैं। आशंका है कि नक्सली योजनाबद्ध तरीके से अपने काडरों को वोटर और राशन कार्ड दिला रहे हैं, ताकि पुलिस को उन पर हाथ डालने से पहले सोचना पड़े। इस आशंका पर गृह मंत्रालय और दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच मंत्रणा हुई। तय हुआ कि राशन कार्ड और वोटर कार्ड तो बनाए ही जाएं, इस सोच के मद्देनजर केंद्र ने दोनों ही राज्यों के प्रशासन को वोटर व राशन कार्ड बनने की प्रक्रिया तेजी से चलाने को कहा है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि सरपंच या सरकारी कर्मचारी कार्ड बनाने में लोगों का शोषण न करें।

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