
पांगी की कहानी
सर्दी के मौसम आते ही बीस हजारकी आबादी वाली पांगी घाटी में हालात बदल जाते हैं। छह माह तक बर्फ की कैद से छूटने की आस में इनमें से कई सांसें अटक जाती हैं। हेलीकाप्टर की एक उड़ान के लिए हफ्तों तक पंजीकरण कार्यालय के बाहर लाइनें लगती हैं। छह माह तक देश-दुनिया से कटी रहने वाली पांगी घाटी में सर्दियों में घाटी का तापमान दस डिग्री सेल्सियस से भी कम रहता है। हेलीकाप्टर के बिना चंबा जिला मुख्यालय तक पहुंचना संभव नहीं है। हालांकि यहां रहने वाले अनाज का भंडारण पहले ही कर लेते हैं, लेकिन बीमारी तो किसी को पूछ कर नहीं आती। ऐसी स्थिति में केवल हेलीकाप्टर ही फरिश्ता बनता है। पांगी तक पहुंचने का सबसे नजदीकी रास्ता साच पास है जिससे चंबा से आठ घंटे में पांगी पहुंचा जा सकता है, लेकिन 15 अक्टूबर के बाद यह बंद हो जाता है क्योंकि यहां आठ से दस फुट तक बर्फ जमा हो जाती है। दूसरा रास्ता कुल्लू-मनाली से है। यहां से रोहतांग दर्रे को पार करके पांगी पहुंचा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले से भी एक रास्ता है, लेकिन इस पर केवल छोटे वाहन चल सकते हैं। दोनों मार्ग बंद हो जाने पर वैकल्पिक रूप से यही इस्तेमाल होता है। पर सुरक्षा की दृष्टि से इस मार्ग का इस्तेमाल इतना सरल नहीं है। अब सरकारी हेलीकाप्टर ही एकमात्र उपाय बाकी बचता है।
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