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रविवार, 8 नवंबर 2009

नक्सली बंदूकों पर चीनी ठप्पा?



हथियारों पर है चीनी निशान
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भारत के गृह सचिव जी के पिल्लई का कहना है कि भारतीय माओवादियों और चीन के बीच सीधे संपर्क के कोई संकेत नहीं है पर नक्सलियों को मिल रहे हथियार के सप्लाई के तार चीन से जुड़े़ हो सकते है.

पत्रकारों के संगठन साफमा द्नारा आयोजित एक सम्मेलन में श्री पिल्लई ने कहां, “चीन का माओवादियों से संपर्क केवल शस्त्र सप्लाई हो सकता है.”

उन्होंने कहां दुनिया में छोटे हथियारों का व्यापार सबसे फायदेमंद व्यापार है. “मै वियेना शस्त्र संधि सम्मेलन में गया था जिसमें शस्त्र व्यापार को नियंत्रित करने पर चर्चा हो रही थी, और हम चाह रहे थे कि दुनिया के किसी भी कारखाने में जहां शस्त्रों का उत्पादन हो रहां है वहां हर हथियार पर एक विशिष्ट नंबर दिया जाए. आप को ये जानकर आश्चर्य होगा कि जिन देशो ने इसका विरोध किया वो थे चीन अमरीका पाकिस्तान और ईरान. बाकी सब राज़ी थे. क्यों कि ये चारों देश दुनिया के 80 प्रतिशत छोटो शस्त्रों की सप्लाई करते है जैसे एके 47, ऐसॉल्ट राइफलें, ग्रेनेड आदि.”

बातचीत के लिए तैयार

श्री पिल्लई का कहना था कि सरकार ने स्पष्ट किया है कि माओवादी हिंसा छोड़ते है तो सरकार बातचीत के लिए तैयार है. वे चाहे अपने हथियार अपने पास रख सकते है.

उनका ये भी कहना था कि चरमपंथी, पृथकतावादी तभी बातचीत के लिए लिए आते है जब वो दबाव में होते है. गृह मंत्री पी चिदंबरम अपना मत एक पत्र के ज़रिए पूर्व लोक सभा अध्यक्ष और सिटीज़न्स इनिशिएटिव फॉर पीस संगठन के रबि रे को लिख कर व्यक्त कर चुके है.

गृह सचिव का आरोप था कि नक्सली बेकसूर लोगों को पुलिस का भेदिया बता कर मार रहे है. पश्चिम बंगाल के लालगढ़ इलाके में नक्सलियों की बढ़ती हिंसा और राज्य सरकार की स्थिति को हाथ से निकल जाने देने की गृह सचिव ने आलोचना की.

श्री पिल्लई ने कहां कि सरकार नक्सलियों के खिलाफ़ कोई युद्ध नहीं छेड़ रही और नक्सल विरोधी कारवाई को ऑपरेशन ‘ग्रीन हंट’ के नाम से बुलाने को भी उन्होंने मीडिया की करतूत बताया.


मुझे ये समझ नहीं आता कि माओवादियों को एक सड़क या प्राथमिक शिक्षा केंद्र से क्या परेशानी हो सकती है.”

गृह सचिव का मानना था कि देश की आधी समस्या का हल पुलिस सुधारों के ज़रिए हो जाता और उसके नहीं होने से पुलिस महकमें का रवैया भी जैसा होना चाहिए वैसा नहीं है.

उनका कहना था,“जब तक देश के सभी राजनीतिक दल ये नहीं समझने लगेंगे कि नरेगा, किसानों की ऋण माफी जैसे कदमों की तरह ही पुलिस सुधार भी ज़रुरी है, ये समस्या बनी रहेगी.”

पिल्लई ने साथ ही कहां कि 65,000 अर्धसैनिक बलों की तैनाती जैसी सरकार की कोई मंशा नहीं है.

गृह मंत्री ने अगस्त में कहा था कि अर्धसैनिक बल, कोबरा बटालियन आदि का इस्तेमाल इस बड़ी संख्या में होगा. बयानों में इस तरह के अंतर से अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि शायद सरकार में नक्सलियों के खिलाफ़ कारवाई को लेकर अंतरद्वंद बना हुआ है.

वहीं सरकार की बातचीत की पेशकश को फिलहाल न नक्सली मान रहे है न नागरिक हितों के लिए काम कर रहे लोगों को सरकार की मंशा पर विश्वास है क्योंकि आंध्र प्रदेश में नक्सलियों से बातचीत के बीच उनके ख़िलाफ़ कारवाई को वो नहीं भूले है.

इस मुहिम के राजनीतिक असर को लेकर भी सरकार चिंतित है क्योंकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि आम आदमी इस मुहिम को किस तरह देखेगा.

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