
पराली का धुआं व्यक्ति को निचोड़ देता है। मैं तो पराली जलने के दिनों में अपने कमरे में बंद रहना पसंद करता हूं। पीएयू लुधियाना के पूर्व डीन डा. एचएस गरचा का यह कथन पराली के धुएं की विकरालता बताने के लिए काफी है। जनस्वास्थ्य पर इसके प्रभाव का पूरा ब्योरा आते-आते आएगा, लेकिन प्रदेश के तमाम अस्पतालों में इसके कारण होने वाली बीमारियों से पीडि़त लोगों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। अमृतसर के इस्लामाबाद निवासी सुरेश को उसका बेटा डाक्टर के पास दिखाने के लिए लाया है। सुरेश का खांस-खांस कर बुरा हाल है। उससे सांस भी नहीं लिया जा रहा। उसका यह हाल मौजूदा समय के कारण हुआ है। यही हालत झब्बाल के पास रहने वाले सुखचैन की है। वह भी अपने भाई के साथ अस्पताल में जांच के लिए आया है। उसने डाक्टर को बताया कि इन दिनों हर वर्ष उसकी हालत इतनी खराब हो जाती है कि वह ठीक से सांस भी नहीं ले सकता। ऐसे दर्जनों ही मरीज इन दिनों अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच रहे है। इसका मुख्य कारण है कि पराली जलाने से निकलने वाले धुएं ने वातावरण को खराब कर दिया है। यह धुआं धुंध के साथ मिल कर स्मॉग का रूप धारण कर रहा है। एकत्र जानकारी के अनुसार, प्रदेश के केंद्रीय जोन के मुख्य हिस्सों अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पटियाला, शहीद भगत सिंह नगर, गुरदासपुर, रोपड़, बठिंडा का कुछ भाग, संगरूर, मोगा, फिरोजपुर के कुछ हिस्से में पराली धड़ल्ले से जलाई जा रही है। इससे जनस्वास्थ्य को बहुत नुकसान होता है। इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के पंजाब चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष एवं ईएसआई अस्पताल (लुधियाना) के बाल रोग विशेषज्ञ डा. राजिंदर गुलाटी का कहना है कि पराली के धुएं से बच्चों को छाती संबंधी बीमारियां हो जाती हैं। एसपीएस अपोलो अस्पताल (लुधियाना) के कंसल्टेंट डा. दिनेश गोयल का कहना है कि दमे के मरीजों के लिए तो मौत को दावत देने वाली स्थिति बन जाती है। ठंड होने से रात का तापमान गिरता है और धुआं नीचे आ जाता है। इससे दमा रोगियों को अटैक की आशंका प्रबल हो जाती है। इन दिनों दमा, खांसी, जुकाम से पीडि़त लोगों की संख्या दुगुनी हो रही है। चर्मरोग विशेषज्ञ डा. जसतिंदर कौर गिल ने बताया कि इन दिनों त्वचा रोग व एलर्जी होने की आशंका बनी रहती है। त्वचा रूखी-सूखी हो जाती है। नेत्र रोग विशेषज्ञों डा. जीएस धामी व डा. अनुराग बांसल का मानना है, यह धुआं आंखों में जलन पैदा करता है। आंखों में दर्द के साथ-साथ पानी बहने लगता है। सिर दर्द भी रहता है। ऐसे में व्यक्ति थका-थका महसूस करता है। डीएमसी अस्पताल के डा. बीएस औलख ने कहा कि यह धुआं फेफड़ों तक पहुंच जाता है, जिससे फेफड़े धीरे-धीरे काले होने शुरू हो जाते हैं और व्यक्ति अस्वस्थ महसूस करता है। देखने में आ रहा है कि लोगों ने सैर करनी कम कर दी है, क्योंकि सुबह-शाम धुएं की चादर आबोहवा पर बिछी रहती है। पता चला है कि अकेले बठिंडा सिविल अस्पताल की औसतन 750 मरीजों वाली ओपीडी में हर रोज इन तमाम बीमारियों से पीडि़त होकर 200 लोग अस्पताल पहुंच रहे हैं। प्राइमरी हेल्थ सेंटरों और सब डिवीजन व प्राइवेट अस्पतालों को मिलाकर यह गिनती औसतन 500 का आंकड़ा भी पार कर रही है। प्रदेश भर में यह आंकड़ा कई हजार हो गया है। बठिंडा के बाल रोग विशेषज्ञ डा. सतीश जिंदल कहते हैं कि पिछले चार-पांच दिनों में उनके पास सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और त्वचा की खुजली से पीडि़त ज्यादा बच्चे पहुंच रहे हैं। तकरीबन 80 फीसदी बच्चे प्रदूषण जनित रोगों की चपेट में आ रहे हैं। डा. रमेश माहेश्वरी एवं डा. परमिंदर बांसल ने कहा कि अगर ज्यादा दिनों तक प्रदूषण भरा वातावरण जारी रहा तो अस्थमा के मरीज को पहले तो सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ होगी। बीमारी का असर बढ़ेगा तो फेफड़ों के खराब होने की आशंका प्रबल हो जाएगी। अमृतसर के चमड़ी रोग विशेषज्ञ डा. केजेएस पुरी के अनुसार हवा में मौजूद एसपीएम से चमड़ी पर लाल धब्बे पड़ जाते है। इन पर खारिश करने से इन दानों में पस पड़ जाती है। जो पीड़ादायक होते हंै। डाक्टरों ने इन बीमारियों से बचने के लिए लोगों को सोने से पहले स्टीम लेने की सलाह दी है। आंखों की बीमारियों से बचने के लिए आंखों पर चश्मा पहन कर रखे।
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