
नई दिल्ली: दुनिया भर की सरकारें दुबई के कर्ज संकट के आकलन में जुट गई हैं। अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर भारत तक के शेयर बाजार और केंद्रीय बैंक दुबई के कारोबार से जुड़े कंपनियों के जोखिम का हिसाब-किताब निकालने लगे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि दुबई के कर्ज संकट की वास्तविक तस्वीर मौजूदा से काफी बड़ी हो सकती है और वैश्विक व खासतौर पर पूर्वी व दक्षिण एशिया बाजार में उम्मीद से ज्यादा हड़कंप मचाने की क्षमता रखती हैं। वैसे दुनिया की निगाहें अबूधाबी की दवा पर हैं जो दुबई को मिल सकती है। लेकिन इस दवा की मात्रा और असर को लेकर असमंजस है। अगला हफ्ता वित्तीय बाजारों के लिए उथल-पुथल भरा हो सकता है। यही कारण है दुनिया की सरकारें अपने वित्तीय बाजारों को ढांढस बंधाने में लगी हैं। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि दुबई संकट कोई बहुत बड़ा नहीं है और इसको लेकर ज्यादा बदहवासी नहीं फैलानी चाहिए। भारत पर भी इसका असर बहुत थोड़ा होगा। दूसरी तरफ प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री वायलार रवि ने कहा है कि दुबई संकट के बावजूद वहां काम करने वाले भारतीय पलायन नहीं करेंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन भी आशंकाओं पर पानी डालने आगे आए हैं। दुबई के संकट को लेकर जितनी मुंह उतनी बातें वाली स्थिति है। दुनिया के पर्यवेक्षक मान रहे हैं कि दुबई के बवंडर में तमाम बैंकों और निवेश कंपनियों के खरबों डालर फंस सकते हैं जिनका सीधा संबंध दुबई सरकार की कंपनियों से तो नहीं है मगर उनका दुबई में निवेश रहा है। इसलिए बैंक व वित्तीय निवेश अपनी रिस्क असेसमेंट प्रणाली को सक्रिय कर चुके हैं। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह इस संदर्भ में कुछ और खुलासे हो सकते हैं। दुबई को इस संकट से बचाने की वैसे संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में और खासतौर पर इसके पड़ोसी अबूधाबी में जोरदार कोशिशें शुरू हो गई हैं। संकेत यह हैं कि अबूधाबी की अगुवाई में यूएई के कुछ प्रमुख बैंक दुबई को वित्तीय राहत पहुंचाने के लिए एक पैकेज का ऐलान कर सकते हैं। अबूधाबी ने इसी सप्ताह दुबई की प्रमुख निर्माण कंपनियों को 5 अरब डालर की मदद दी है। फरवरी में अबूधाबी का केंद्रीय बैंक 10 अरब डालर दे चुका है। खाड़ी के अन्य देशों ने भी यूएई सरकार पर दुबई को बचाने का दबाव बनाया हुआ है क्योंकि इस संकट का असर पूरे क्षेत्र पर पड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। अबूधाबी के पास 900 अरब डालर का अतिरिक्त कोष पड़ा हुआ है। अबूधाबी जिन शर्तो पर दुबई को वित्तीय मदद देने को तैयार है उसे अपनाने के लिए दुबई को अपना ढांचा बदलना पड़ सकता है। अबूधाबी का कहना है कि दुबई को अपने रीयल एस्टेट, सेवा व पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था और उदारीकरण के प्रक्रिया को कुछ धीमा करना पड़ेगा। इसके अलावा अबूधाबी और दुबई के शाही परिवारों के बीच आपसी तालमेल पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। पर्यवेक्षकों का कहना है कि दुबई की बीमारी का जो इलाज अबूधाबी बता रहा है वह इसे आंशिक तौर पर ही राहत देगा। क्योंकि इस संकट से दुबई का पूर ढांचा चरमरा सकता है, जिसके परोक्ष असर बहुत गहरे होंगे।
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