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रविवार, 15 नवंबर 2009

कानून तो है, विकल्प नहीं


पंजाबभर में हर वर्ष 23 मिलियन टन पराली का उत्पादन होता है। इसमें अधिकतर किसान अन्य कोई विकल्प न होने के कारण आग के हवाले कर देते हैं। इसके कारण जहां भूमि का सत्यानाश होता है, वहीं वातावरण भी जमकर दूषित हो रहा है। ऐसा नहीं है कि सरकार के पास हवा में प्रदूषण फैलाने को लेकर कोई कानून नहीं है, बल्कि सरकार इसे तब तक लागू करने में हिचकिचा रही है जब तक वह किसानों को पराली जलाने के बदले सही विकल्प नहीं दे दिया जाता। पंजाब लगभग 144 लाख टन धान हर वर्ष में पैदा होता है और देश में सबसे अधिक धान केंद्रीय पूल में देता है। इसी कारण पंजाब में धान काटने के बाद खेतों में खड़ी रह जाने वाली पराली की भी मात्रा 230 लाख टन तक पहुंच जाती है। कृषि माहिरों के अनुसार हाल ही में किसानों को अपनी पराली के लिए प्रति एकड़ 3 से 3.5 हजार रुपये की आमदनी हुई। पर्यावरण माहिर व पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के सदस्य संत बलबीर सिंह सींचेवाल का कहना है कि किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए सख्ती बरतने के बजाये उन्हें इसके विकल्प बताए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि पराली से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, लेकिन वह अपने तत्काल लाभ के लिए पराली को आग में जला देते हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह रोटा वेटर व हैपी सीडर सहकारी सभाओं के जरिए उपलब्ध करवाए। उन्होंने कहा कि प्रदूषण रोकने के तहत पराली जलाने वाले के खिलाफ कानून तो है, लेकिन उसका उपयोग नहीं हो पा रहा। कृषि अर्थशास्त्री व पंजाब किसान आयोग में सलाहकार के तौर पर कार्यरत डा. पीएस रंगी ने कहा कि जब तक सरकार द्वारा किसानों को पराली जलाने के बदले कोई अन्य विकल्प नहीं दिया जाता तब तक उन्हें रोकना आसान नहीं है। उनका कहना है कि पंजाब में लगभग 22 से 23 मिलियन टन पराली हर वर्ष पैदा हो रही है और इसका उपयोग बायो फ्यूल के जरिये बिजली पैदा करने के लिए उपयोग के अलावा अन्य उपयोग हो सकता है। उनका कहना है कि बिजली पैदा करने के लिए कुल पराली का 15 प्रतिशत हिस्सा उपयोग में लाया जा सकता है। पंजाब सरकार ने राज्य में बायो फ्यूल से चलने वाले 29 पावर प्लांट बनाने की योजना बनाई है, जिसमें से सात प्लांटों ने कार्य शुरू कर दिया है। पंजाब में लगभग 600 एग्रो सर्विस सेंटर हैं, जिन्हें सहकारी व अन्य संस्थाओं द्वारा चलाया जा रहा है। इसके द्वारा मशीनों को सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाया जा सकता है। पंजाब कृषि विभाग के निदेशक बलविंदर सिंह सिद्धू ने बताया कि उनका विभाग राज्यभर के किसानों को पराली न जलाने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस समय राज्य में पराली 60 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रही है, जिसे बिजली पैदा करने वालों के अलावा अन्य लोग ले रहे हैं। वह किसानों को बता रहे हैं कि पराली को जलाने के बजाय उससे पैसा कमाया जा सकता है और इसके लिए किसानों को जहां रोटा वेटर और हैपी सीडर का उपयोग करने को कहा जा रहा है। वहीं, उन्हें यह सस्ते दामों पर उपलब्ध भी करवाया जा रहा है। उनका कहना है कि राज्य में लगभग सभी जिलों में किसानों के खिलाफ पराली जलाने के आठ से दस केस दर्ज हुए हैं। पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के एक उच्चाधिकारी का कहना था कि अभी तक पंजाब सरकार द्वारा पराली को जलाने वाले के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई कानून नहीं है। केवल धारा-144 के तहत पंजाब के जिलों में डीसी द्वारा किसानों पर मामले दर्ज किए गए हैं। उनका कहना है कि बोर्ड के पास केवल औद्योगिक प्रदूषण पर ही कार्रवाई करने के अधिकार हैं।

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