
शिमला, महंगाई का विभत्स रूप और दो वक्त की रोटी का जुगाड़, भले ही घर-घर की कहानी हो गया है, लेकिन दाल-रोटी के लिए अब देश की समृद्ध परंपराओं की भी बलि ली जा रही है। पीढ़ी दर पीढ़ी से संयुक्त परिवारों के साझे चूल्हे भी बढ़ती कीमतों ने अलग कर दिए हैं। हिमाचल प्रदेश में दादी अपने पोते-पोतियों को प्यार से बना भोजन नहीं दे रही और बहू भी सास-ससुर के लिए खाना नहीं बना रही। यह कथा संयुक्त परिवारों के बिखराव से हुई। राज्य में लोग सरकारी राशनकार्ड के जरिए सब्सिडी का अधिकतम राशन लेने के लिए अलग हो रहे हैं। यह चौकाने वाला ट्रेंड राज्य में बढ़ते राशन कार्डो के आंकड़ों से सामने आया है। हिमाचल में एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) राशनकार्ड धारकों की संख्या में काफी इजाफा हो रहा है जबकि जनसंख्या के दृष्टिगत आंकड़ों में कोई परिवर्तन नहीं है। यह ज्यादातर उन पंचायतों में हो रहा है, जहां पहले एक राशनकार्ड में दो से तीन पीढि़यों के नाम दर्ज थे और अब न सिर्फ बेटे अपने मां-बाप से अलग राशनकार्ड बना रहे हैं बल्कि भाई-भाई से भी अलग हो रहा है। एक कार्ड के तीन हिस्सों में बंटने से प्रदेश में कोटे के राशन की खपत भी बढ़ रही है। कारण साफ है, लोगों को अब एक-एक किलो के बजाए तीन-तीन किलो दालें मिल रही हैं। ऐसा होने से सरकार के पास सब्सिडी वाले राशन की कमी हो गई है। लिहाजा कई डिपुओं में लोगों को न सस्ती दालें मिल रही हैं, न ही चीनी व अन्य सामान। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग का कहना है कि राशन कार्डो की संख्या अगर ऐसे ही बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में आटा व चावल के कोटे पर फिर से कैंची चल सकती है। केंद्र के आवंटन के अनुरुप सरकार एपीएल परिवारों को 14 किलो आटा व 7 किलो चावल प्रति माह सस्ती दर पर उपलब्ध करवा रही है, लेकिन प्रदेश में जिस हिसाब से एपीएल कार्ड बढ़ रहे हैं उससे एपीएल परिवारों के लिए निर्धारित चावल व आटे की मात्रा कम पड़ने लगी है। विभाग के आंकड़े बताते है कि प्रदेश में पिछले 32 माह में औसतन 5 हजार 451 एपीएल कार्ड प्रति माह बने हैं। अगस्त, 2009 तक के आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में एपीएल परिवारों की संख्या 10 लाख 63 हजार 794 है। सरकार ने कुछ माह पहले ही प्रति परिवार 14 किलो आटा व 7 किलो चावल की मात्रा निर्धारित की थी, लेकिन मौजूदा कार्डो की संख्या को देखते हुए अब आटे की मात्रा 13.62 व चावल की मात्रा 6.69 प्रति किलो प्रति परिवार बैठ रही है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में आटा व चावल की यह मात्रा और कम हो जाएगी।
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