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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

यमुना को बचाने में डूबे 18 सौ करोड़

नईदिल्ली: गंगा में जहरीला ही सही पानी तो है, लेकिन दिल्ली की यमुना तो मृतप्राय है। वह भी तब जब कि इस नदी के बचाने में 1800 करोड़ रुपये डूब चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के एक दर्जन आदेश आ चुके हैं। अब नौबत यहां भी घाटों पर पुलिसिया पहरा बैठाने की है जैसा कि इसी महीने वाराणसी में हुआ है, ताकि सूखी यमुना दिल्ली का कूड़ेदान न बन जाए। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली आने वाले विदेशी यमुना को देखकर सिर्फ अफसोस ही करेंगे, क्योंकि यमुना को साफ करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तीन समय सीमाएं भी हवा में उड़ चुकी हैं। अब बारी नदियों पर पुलिस के पहरे की है। गंगा को अपने भक्तों से बचाने के लिए वाराणसी प्रशासन ने पुलिस को लगा दिया है। दिल्ली भी इसी तरफ बढ़ रही है। वाराणसी के प्रशासन ने धारा 144 यानी निषेधाज्ञा के तहत घाटों व नदी में साफ सफाई तय करने के लिए खाकी वर्दी को लगा दिया है। वैसे, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष एस.सी.गौतम इस रास्ते से बहुत इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि एक शहर के तटों की निगरानी से क्या होगा। अगर देश के सभी सवा छह सौ जिलों में जिम्मेदार अधिकारी यह तय कर ले कि घरेलू सीवर को नदियों में जाने से रोक दें, तो सत्तर फीसदी गंदगी अपने आप समाप्त हो जाएगी। उनकी बात सही है, क्योंकि सबसे बड़ी अदालत ने 2005 तक यमुना को साफ करने की सीमा तय की थी, मगर हुआ उल्टा और यमुना पहले से ज्यादा मैली हो गई। 17 साल से सुप्रीम कोर्ट और 7 साल से हाईकोर्ट यमुना की सफाई की निगरानी कर रहा है। सरकार भी यमुना एक्शन प्लान का पहला चरण और दूसरा चरण लागू कर चुकी है। हाल में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने यमुना की गंदगी पर चिंता जताते हुए दिल्ली सरकार से इसे चुनौती के रूप में लेने को कहा।

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