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शनिवार, 6 अगस्त 2011

मासूम बच्चों की जिंदगी खतरे में, प्रशासन मौन कभी भी हो सकती है बड़ी दुर्घटना

डबवाली (यंग फ्लेम) क्षेत्र में चल रहे लगभग दर्र्जन भर प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को लेकर जाने वालेे इन दिनों खस्ताहाल पुराने मॉडल के हैं। इन वाहनों में मासूमों की जिंदगी सुरक्षित नहीं है। स्कूली वाहनों में सुरक्षा के मापदंड भी पूरे नहीं किए गए है। इन वाहनों में प्राथमिक उपचार किट तो उपलब्ध तो होनी ही क्या थी, बल्कि इन वाहनों में अग्नि शमन यंत्र भी उपलब्ध नहीं है। वैसे कुछ एक वाहनों को छोड़ दिया जाए तो बाकि सभी वाहनों बच्चों को ले जाने के ज्यादातर मापदंड़ों पर खरे नहीं उतरते हैं। ज्यातातर वाहन तो इस समय अव्यवस्थायों के शिकार हैं तथा यनीय हालात से गुजर रहे है। इन स्कूलों में शिक्षण करने वाले विद्यार्थियों को उनके गंतव्य से लेकर स्कूल पंहुचने का जिम्मा उठाने के लिए मारूति वन का प्रयोग किया जा रहा है। उन वैनों में छोटे छोटे बच्चों को पशुओं की भांति ठुंसा जाता है। इतना ही नहीं इन वैनो में निर्धारित मापदंड़ों को ठेंगा दिखाते हुए इनमेें घरेलू गैस सिलैंडर प्रयोग किए जाते हैं। घरेलू गैस के प्रयोग से किसी भी समय हादसा हो सकता है। यह गाडिय़ां 10-15 वर्ष पुरानी हैै। यहां तक कि इन गाडिय़ों का बीमा भी नहीें करवाया गया है। कई वाहनों के पीछे शिकायत नम्बर लिखना तो दूर की बात है, जबकि इन वाहनों की नम्बर प्लेट ही नहीं है। कई वाहन चालक गंतव्य से स्कूल तक पंहुचने की जल्दी में गाड़ी को ओवर स्पीड से चलाते हैं, जिसकी वजह से किसी भी समय बड़ा हादसा हो सकताहै। कई वाहनों पर तो पीला रंग कि या गया है और ही स्कूल का नाम अंकित है जिससे यह पता नहीं चलता है कि यह वाहन स्कूल का है या कोई अन्य व्यवासयिक है। वहीं इन स्कूली वाहनों में स्वार मासूमों की जिंदगी पर हर समय खतरे की तलवार लटकी रहती है। जबकि स्कूल प्रशासन अभिभावकों से पूरा वाहन खर्च वसूल करता है, तो व्यवस्था को दुरूस्त करने की उनकी जिम्मेवारी बनती है। जिला प्रशासन को इन वाहनों की ओर ध्यान देना चाहिए ताकि मासूमों की जिंदगी दांव पर लगने से बच जाए।

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