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शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
खरबूजे के छिलके पर भारत ने जताया अपना हक
हिंदुस्तानी पारंपरिक ज्ञान को चोरी छिपे अपने नाम से बाजार में बेच लेने की स्पेन की एक कंपनी की कोशिश आखिरकार नाकाम साबित हुई। भारत ने खरबूजे के छिलके के औषधीय गुण पर अपना हक जताया है। नीम और हल्दी के बाद इस बार खरबूजे के छिलके को स्पेन की एक कंपनी अपने नाम कराने जा रही थी। लेकिन पहले से सजग भारतीय वैज्ञानिकों ने इस बार ऐसी कोशिश कामयाब नहीं होने दी। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथ (आयुष) विभाग की साझा कोशिश ने इस बार कामयाबी हासिल की। इनकी तकरीर को समझने के बाद यूरोपीय पेटेंट कार्यालय ने सफेद दाग (ल्यूकोडर्मा) के इलाज के लिए खरबूजे के छिलके के इस्तेमाल को पेटेंट देने से इनकार कर दिया है। यहां स्पेन की एक फार्मा कंपनी को खरबूजे के छिलके के औषधीय उपयोग पर पेटेंट आखिरी दौर में पहुंच चुका था। स्वास्थ्य मंत्रालय की सचिव (आयुष) एस. जलजा ने बताया, पिछली बार यूरोपीय पेटेंट दफ्तर ने ही नीम से उपचार का पेटेंट दे दिया था। तब हमें अपने हक की लड़ाई लड़ने में दस साल लग गए थे। लेकिन इस बार हमारी तैयारी काफी मजबूत थी और पेटेंट दिए जाने से ठीक पहले हम अपनी बात मनवाने में कामयाब रहे। इस साल की नौ फरवरी को स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐलान किया था कि यूरोपीय पेटेंट दफ्तर के साथ हमारा करार हो गया है। इस करार के मुताबिक वे हर पेटेंट से पहले सीएसआईआर के ट्रेडीशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) का हवाला जरूर लेंगे। इसके बावजूद स्पेन की कंपनी इस पेटेंट को हासिल करने के कगार पर कैसे पहुंच गई, इस बारे में पूछे जाने पर सीएसआईआर के महानिदेशक प्रो. समीर के ब्रह्मचारी ने कहा कि आम तौर पर वे इसे जरूर जांच लेते हैं। उन्होंने कहा कि हमें खुद भी सजग रहना होता है। हम सिर्फ उन्हें ही दोषी नहीं ठहरा सकते। टीकेडीएल के तहत योग, आयुर्वेद, यूनानी और सिद्धा सहित पारंपरिक ज्ञान पर आधारित लगभग दो लाख फार्मूले दर्ज किए गए हैं। इसमें खरबूजे के छिलके का इस्तेमाल भी शामिल है। यूरोपीय पेटेंट दफ्तर के 34 देश सदस्य हैं। अगर एक बार यहां से किसी फार्मूले को पेटेंट मिल जाए, तो उसके खिलाफ लड़ाई लड़ना बेहद श्रमसाध्य और खर्चीला होगा।
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