डॉ सुखपाल सावंत खेडा,
डबवाली,
एक को तलाक देने और दूसरे से मंगनी टूटने के बाद भाजपा अब हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अकेले ही उतरेगी। इस फैसले के पीछे भाजपा के बड़े राष्ट्रीय नेताओं का अहं नेपथ्य में ही सही, लेकिन प्रभावी भूमिका में रहा। ऐसे में पार्टी के राज्य के नेताओं व केंद्रीय प्रभारी की भूमिकाएं सीमित रह गई थीं। रही बात राजनीतिक नफा नुकसान की, तो भाजपा को नया सहयोगी तो मिला नहीं, उल्टे उसे राजग से एक सहयोगी को खोना भी पड़ सकता है। हरियाणा में भाजपा व हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) का तालमेल मंजिल के करीब पहुंच कर टूट गया। अब पार्टी न तो पुराने सहयोगी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के पास जाएगी और न ही वह हजकां से टूटी बात फिर शुरू करेगी। राज्य की सभी सीटों पर उसके उम्मीदवार होंगे। पिछली बार भी पार्टी विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ी थी और उसकी मात्र दो सीटें आई थीं। इस बार भी हालात वैसे ही हैं। हालांकि प्रभारी महासचिव विजय गोयल का कुछ ज्यादा ही आशाएं हैं। उन्होंने कहा कि पांच कोणीय संघर्ष में भाजपा के लिए आसार बेहतर हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार हरियाणा के मामले में पार्टी के दो प्रमुख केंद्रीय नेताओं के आपसी अहं लगातार आड़े आते रहे हैं। इनमें एक इनेलो के साथ गठबंधन को बेहतर मानता है, जबकि दूसरा हजकां के पक्ष में रहा है।
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