
टेलीविजन पर धुआंधार विज्ञापनों के कारण देश में गर्भनिरोधक गोलियों की न सिर्फ स्वीकार्यता बढ़ी है बल्कि युवतियों में इनके इस्तेमाल का चलन भी बढ़ा है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति घातक है और इन दवाओं के ज्यादा इस्तेमाल से युवतियों में एड्स जैसी यौन संचारित बीमारियां (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज- एसटीडी) बढ़ सकती हैं। सफदरजंग अस्पताल में स्त्रीरोग विभाग की प्रमुख डा. सुधा शलहान ने बताया कि विज्ञापनों के चलते 20 से 35 साल की महिलाओं में आपात गर्भनिरोधकों के सेवन की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। उन्हें लगता है, अवांछित गर्भ को रोकने का यह तरीका आसान और बेहतर है। इन दवाओं का जमकर इस्तेमाल न केवल युवतियों के लिए खतरनाक है बल्कि इससे उन्हें एड्स जैसी एसटीडी होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। इसके कई अन्य दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे अत्यधिक चिड़चिड़ापन, मासिक धर्म में विलंब, अत्यधिक रक्तस्राव और उल्टियां आदि। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन गोलियों के जरिए शरीर में अत्यधिक हार्मोन पहुंच जाते हैं। बेहतर होगा कि इनका सेवन चिकित्सक के परामर्श से किया जाए। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में स्त्री रोग विभाग की अध्यक्ष डा. पुष्पा सिंह का कहना है कि पहले विवाह पूर्व गर्भवती होना अनैतिकता माना जाता था। तब लड़कियां असुरक्षित यौन संबंधों से दूर ही रहती थीं। लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। किशोरियों को गर्भनिरोधक गोलियां खाकर गर्भधारण से बचना आसान लगता है। लेकिन इन दवाओं को चिकित्सक की सलाह के बगैर लेना खतरनाक हो सकता है। हाल ही में भारत के दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) सुरिंदर सिंह ने भी एक समिति गठित करने की बात कही थी, जो इस पर विचार करेगी कि खुलेआम मिलने वाले आपात गर्भनिरोधक गोलियों को डाक्टर के परामर्श से दिया जाए या नहीं। सिंह ने बताया, भारत में आपात गर्भनिरोधकों के बारे में पर्याप्त जागरुकता नहीं है। इसलिए काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। कई देशों में आपात गर्भनिरोधक सीधे दुकानों से खरीदे जा सकते हैं लेकिन हमारे देश में यह व्यावहारिक नहीं लगता।
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