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बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

मन जीत पाएंगे मोहन?


उम्मीदों और अरमानों की गठरी उठाए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह बुधवार को अलगाववादियों के कश्मीर बंद और आतंकी हमले की आशंकाओं के बीच एक बार फिर धरती की जन्नत में पधारेंगे। अरमान सिर्फ राज्य सरकार के ही नहीं, बल्कि आम अवाम और हड़ताल से स्वागत कर रहे अलगाववादियों के भी हैं। बीते पांच सालों में चौथी बार कश्मीर आ रहे मनमोहन सिंह के इस दौरे को जिस तरह प्रचारित किया जा रहा है, उतना प्रचार वर्ष 2004 में बतौर प्रधानमंत्री उनके कश्मीर के पहले दौरे को भी नहीं मिला था। उस समय राज्य सरकार, अलगाववादियों और आम अवाम को उनसे कोई ज्यादा उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। लेकिन इस बार सभी को उनसे वही उम्मीद है जो 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सबको चौंकाते हुए पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए पैदा की थी। सबको लग रहा है कि वह इस बार कोई बड़ा एलान करेंगे जो राज्य की तकदीर बदल देगा। खैर, अलगाववादियों के बंद के बीच बुधवार सुबह यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी व रेलमंत्री ममता बनर्जी के साथ कश्मीर पहुंच रहे प्रधानमंत्री काजीगुंड-अनंतनाग ट्रैक पर पहली रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाएंगे। साथ ही प्रधानमंत्री पुनर्निर्माण पैकेज योजना का द्वितीय चरण घोषित करने व कश्मीर से सुरक्षाबलों की वापसी और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने संबंधी एलान की उम्मीद है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की चाह है कि पीएम जीरो टालरेंस के वादे की उड़ रही धज्जियों को बंद कराते हुए सुरक्षाबलों को मिले विशेष अधिकार समाप्त करें। इसके अलावा सीमा पार गए गुमराह युवकों की सम्मानजनक वापसी के लिए भी कुछ करके जाएं। वहीं, मुख्यधारा से दूर रहने वाले अलगाववादियों को हालांकि कुछ ज्यादा की उम्मीद नहीं है, लेकिन वह इस आस में हैं कि मनमोहन सिंह कश्मीर में अमन बहाली के लिए रुकी पड़ी शांति वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए औपचारिक न्योता देकर जाएंगे। हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए कश्मीर बंद का भी आयोजन किया है। पाक में सिख तीर्थ यात्रियों.. रिकार्ड की थी। पाकिस्तान की जमीन से बात कर रहे सलाहुद्दीन ने अपने कारिंदो को भारत को ईंट का जवाब पत्थर से देने की बात कही है। उसने कहा है कि अपने कैडरों का टूटा मनोबल बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा तबाही मचाएं। सलाहुद्दीन ने पलटवार कर सरकार के साथ भारतीय अवाम को भी सबक सिखाने की ताकीद की है। सलाहुद्दीन के मंसूबों का पता चलने के बाद गृह मंत्रालय ने तत्काल स्थिति की समीक्षा की। जिएची को नसीहत, दलाई पर.. डेढ़ घंटे लंबी मुलाकात में विवादित मुद्दों को कुछ इस तरह से उठाया। थाइलैंड में चीन के प्रधानमंत्री जियाबाओ के समक्ष प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दलाई पर अपनी दो टूक राय के जरिए भावी वार्ता की जो बुनियाद रखी थी कृष्णा ने उसी से बातचीत को आगे बढ़ाया। फिर उठे दोनों मुल्कों के बीच हालिया विवाद की जड़ में पड़े मसले। पाक में आतंक के खिलाफ.. रास्ता भी खोल लिया। साथ ही भारत ने अफगानिस्तान में अपनी भूमिका पर दोनों मुल्कों की मुहर हासिल कर तालिबान जैसी उन ताकतों को जवाब भी दिया जो काबुल में उसकी रचनात्मक गतिविधियों पर आग बबूला हो रहे हैं। मंगलवार को हुई बैठक के दौरान काबुल में भारतीय दूतावास पर तालिबान के हमले की निंदा कर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लवरोव और उनके चीनी समकक्ष यंग जिएची ने अपने मुल्कों का जवाब और साफ कर दिया। अफ-पाक में अपनी भूमिका बढ़ाने को लेकर तीनों मुल्कों का संकल्प ऐसे समय आया है जबकि अमेरिका इस क्षेत्र पर अपने रुख की समीक्षा कर रहा है। पाक की सरजमीं से सिर उठा रहे आतंकवाद से निबटने पर चीन से हामी लेकर भारत ने बीजिंग को भी खूब फंसाया है। गुलाम कश्मीर जैसे आतंकवादियों से भरे क्षेत्र में अपनी मौजूदगी पर चीन को दोबारा विचार करना पड़ेगा। आरआईसी की बैठक के बाद जिएची के साथ डेढ़ घंटे चली द्विपक्षीय मुलाकात में भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने उन्हें यह संदेश जरूर दे दिया कि पीओके आतंकियों का सुरक्षित ठिकाना है।

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