
आपने किसी ऐसे अधिकारी के बारे में सुना है, जिन्होंने अपने पास आए सूचना के अधिकार (आरटीआई) के सभी आवेदनों पर संपूर्ण और संतोषजनक जानकारी मुहैया कराते हुए उन्हें 30 दिन की निर्धारित अवधि के भीतर निपटा दिया हो। ऐसे ही अधिकारी हैं, उत्तराखंड के ललित नारायण मिश्रा और हिमाचल प्रदेश के डा. अतुल फुलझेले। जिस देश में अधिकारी काम न करने के लिए बदनाम हों, वहां ऐसे लोगों को ढूंढना मुश्किल है। लेकिन पब्लिक काज रिसर्च फाउंडेशन का अभियान ऐसे अधिकारियों को सामने ला रहा है। इस फाउंडेशन ने देश के सर्वश्रेष्ठ सूचना अधिकारियों और सर्वश्रेष्ठ सूचना आयुक्तों को पुरस्कृत करने के लिए यह मुहिम शुरू की है। दैनिक जागरण की मीडिया पार्टनरशिप में चल रहे इस अभियान के तहत सर्वश्रेष्ठ सूचना अधिकारियों की श्रेणी में तीन लोगों का चयन किया गया है। इनमें से दो को अंतिम रूप से पुरस्कृत करने के लिए चुना जाएगा। इन तीन अधिकारियों में शामिल हैं उत्तराखंड के ललित नारायण मिश्रा और हिमाचल प्रदेश के डा. अतुल फुलझेले। अंतिम विजेताओं की घोषणा 27 नवंबर को की जाएगी। पुरस्कारों का फैसला करने वाली जूरी में दैनिक जागरण के संपादक संजय गुप्त के अलावा एन नारायण मूर्ति, फाली एस नरीमन, जस्टिस जेएस वर्मा, पुलेला गोपीचंद, आमिर खान और जेएम लिंग्दोह शामिल हैं। उत्तराखंड के चमोली जिले के एसडीएम ललित नारायण मिश्रा ने 2006 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में जनसूचना अधिकारी के रूप में काम करना शुरू किया। उन्हें अपने काम में किसी कनिष्ठ का सहयोग नहीं मिला। दरअसल, उनके राह में कांटे बोने की कोशिश हुई, लेकिन वह व्यवस्था से लड़ते रहे। तीन साल बाद उनका तबादला देहरादून कर दिया गया। उन्होंने लोगों तक पारदर्शी तरीके से सूचनाएं मुहैया कराने के लिए एक ई-मेल अकाउंट खोला। इस पर कोई भी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग सकता था। इसके अलावा उन्होंने दूरदराज के गांवों में आरटीआई के बारे में जागरुकता फैलाई। वर्ष 2008 में उनके पास आरटीआई के 60 आवेदन आए। इन सभी आवेदनों पर उन्होंने समय से पूरी सूचना उपलब्ध कराई। तैंतीस वर्षीय मिश्रा की ही तरह हिमाचल प्रदेश के डा. अतुल फुलझेले भी सूचना के अधिकार के लिए समर्पित अधिकारी हैं। इस समय कांगड़ा जिले के एसपी के रूप में तैनात फुलझेले ने ऊना जिले में तैनाती के दौरान अपने पास आए आरटीआई के सभी 43 आवेदनों का तयशुदा समय में संतोषजनक ढंग से निपटारा कर दिया। कांगड़ा में भी उनके फैसले के खिलाफ सिर्फ ग्यारह अपीलें दाखिल की गई हैं। सूचना के अधिकार के तहत लोगों को सूचनाएं मुहैया कराने के साथ ही फुलझेले अपने कनिष्ठ अधिकारियों और कर्मियों की मानसिकता को बदलने के लिए भी प्रयासरत हैं।
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