
17 साल पूर्व हुई थी शांति देवी की मौत, बयान लिया 2009 में
जी हां, यह सच है। भागलपुर में एक मुर्दे ने बयान दर्ज कराया है। ऐसा कमाल किसी तांत्रिक ने नहीं, भागलपुर पुलिस ने कर दिखाया है। 17 साल पहले जिस महिला की मौत हो गई थी, भागलपुर पुलिस ने 2009 में उसका बयान दर्ज किया है। यह कैसे संभव हुआ, पुलिस ही बेहतर बता सकती है। कोतवाली (तिलकामांझी) थानाकांड संख्या 447/2005 में सहायक अवर निरीक्षक रामजी प्रसाद ने विवेचना के दौरान 18 अक्टूबर 2009 को कांड दैनिकी के पाराग्राफ 69 में पांच फरवरी 1992 को शांति देवी और उनके जीवित पति राधिका रमण सिन्हा का बारी-बारी से बयान रिकार्ड किया है। परलोक सिधार चुकी शांति देवी के मुकदमे से संबंधित तमाम बयानों का जिक्र है। मुकदमा जालसाजी, धोखाधड़ी से संबंधित है। लापरवाही की हद तो यह कि तफ्तीशकर्ता ने अनुसंधान के दौरान वारंट निकालने में एक ही व्यक्ति को दो नामों से इंगित करते हुए अदालत से प्रार्थना तक कर दी। अब आरोपी संजय सिन्हा, जिसका घरेलू नाम पिंटू है, पुलिस की धौंसपट्टी सह रहा है। पुलिस रोज घर आ धमकती है। कहती है पिंटू कहां है। जबकि संजय सिन्हा ही पिंटू है। पुलिस का अनुसंधान भी ऐसा कि वर्ष 2005 का मामला और 2009 तक केस डायरी लिखी जा रही है। भागलपुर पुलिस की ऐसे कारनामों के कारण पहले भी जगहंसाई हो चुकी है। वर्ष 2004 में भी काल्पनिक नाम और पते पर इशाकचक पुलिस ने मुकदमा कायम कर आरोपी को जेल भेज दिया था। न्यायालय ने संज्ञान लिया तो आरोपी को मुक्ति मिली। वर्ष 2004 में ही यहां तैनात आरक्षी उपाधीक्षक सुरेश बोदरा ने इश्तेहारी मुजरिम की गवाही हत्याकांड में लेकर इतिहास रच दिया था। वर्ष 2008 में कोतवाली पुलिस प्रभावशाली आरोपी को बचाने के लिए कांड की धारा ही संशोधित कर चुकी है।
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