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सोमवार, 14 जून 2010

बसेरा बनता गया, पेड़ उजड़ते रहे

ऐलनाबाद-पेड़ों को नष्ट कर पर्यावरण के दुश्मन बने शहरी और ग्रामीण लोगों के साथ-साथ सरकारी अमला भी इसके लिए कम दोषी नहीं है। दो दशक पूर्व ग्रामीण क्षेत्रों के कुओं, तालाबों, जोहड़ों व गावों के चारों तरफ बनी घिरनी रास्ते पर पेड़ों के झुंड के झुंड बने दिखाई देते थे। इसी तरह शहर से निकलते ही शुरू हो जाता था, हरियाली का आलम। लोगों ने इन तालाबों, जोहड़ों पर कब्जे कर अपना बसेरा स्थापित कर लिया तो वहीं शहरी क्षेत्र के बढ़ने से भवनों, पेट्रोल पंप, कारखानों आदि का निर्माण होने लगा। इस तरह जैसे-जैसे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से निकलकर आगे बढ़ने लगे तो सबसे पहले कुल्हाड़ी पेड़ों पर चली। ये कुल्हाड़ी ऐसी चलनी शुरू हुई कि अब तक चली आ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरातन संस्कृति की धरोहर माने जाने वाले जोहड़, तालाब, कुएं के इर्द-गिर्द पेड़ों के अंबार लगे होते थे, जिन पर पक्षियों को सुंदर आवाज के मधुर गायन सभी को मोहित करते थे। प्रभावशाली लोगों की शह पर इन कब्जे होने शुरू हुए। ज्यों-ज्यों लोगों ने इन पर अपना हक जताना शुरू किया तो सबसे पहले रास्ते में आने वाले पेड़ों को काटा गया जो कि प्रकृति का संतुलन कायम रखने में सहायक है। ऐलनाबाद खंड में भी ऐसे अनेक गाव है, जहा पर बड़े-बड़े पेड़ों पर चहचहाहट करते हुए सुंदर पक्षी नजर आते थे। उन्हीं पेड़ों को काटकर लोगों ने अपने बसेरे बना लिए। आबादी बढ़ने के साथ-साथ लोगों ने अपना व्यावसायिक कारोबार शुरू करने के लिए सैकड़ों पेड़ों की बलि चढ़ाकर उस जगह को खाली करवाया। ऐलनाबाद शहर की तलवाड़ा रोड़, डबवाली रोड़, सिरसा रोड़, ममेरा रोड आदि पर भी दो दशक पहले बड़े-बड़े विशाल वृक्ष सड़कों-खेतों पर दिखाई देते थे, लेकिन अब पेड़ों की जगह कालोनिया बनी नजर आती है। कमोबेश गावों में भी इसी तरह के मिलते-जुलते हालात है। बड़े-बड़े पीपल, बरगद के पेड़ों को पक्षी अपना बसेरा मानते थे। उन्हीं पेड़ों को काटकर लोगों ने उन्हीं जगहों पर अपना बसेरा बना लिया है। जोहड़ पायतन की जगह पर कब्जे हो गए है। पुराने कुएं, जिन पर कभी ग्रामीण महिलाओं की भीड़ लगी रहती थी, उन्हीं कुओं की मिटती संस्कृति पर आज ग्रामीणों का कोई ध्यान नहीं रह गया है।

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