
( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- हरियाणा की राजनीति और चुनाव में अफसरशाही का रुझान बढ़ता जा रहा है। अफसर रिटायर होकर या नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में कदम रख रहे हैं। यह दीगर बात है कि अभी तक बहुत कम अफसरों को इसमें कामयाबी मिली है। पहले पहल कृपा राम पूनिया ने राजनीति में मजबूत दस्तक दी। 1987 में देवीलाल कृपा राम पूनिया को आईएएस के पद से इस्तीफा दिलवाकर राजनीति में लाए। तब पूनिया प्रदेश में एक बड़े दलित नेता के रूप में उभरे। पर पूनिया देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत सिंह के खेमे में चले गए और पार्टी के संगठन पर देवीलाल के बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला की पकड़ रही। इसके कारण धीरे-धीरे पूनिया राजनीति के हाशिये पर चले गए। वैसे पूनिया से पहले शाम चंद राजनीति में आ गए थे और मंत्री भी बने थे। शामलाल लंदन में स्कूल आफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाते थे। नौकरी छोड़ने के बाद वह 1972 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़कर बंसीलाल की वजारत में वजीर बने। दिलचस्प बात यह है कि बाद में सोनीपत जिला की बरौदा सीट से शाम लाल को हराकर ही कृपा राम पूनिया ने राजनीति में प्रवेश किया। आईएएस अधिकारी आईडी स्वामी सेवानिवृत्त होने के बाद भाजपा में शामिल हो गए। स्वामी ने करनाल संसदीय सीट से दो बार चुनाव जीता और वह केंद्र में मंत्री भी बने। हेतराम बैंक अधिकारी का पद छोड़कर और डा.सुशील कुमार इंदौरा डाक्टर का पद छोड़कर राजनीति में आए और दोनों ही सिरसा से सांसद बने। दोनों ही इनेलो के टिकट पर सांसद बने थे पर अब दोनों ही कांग्रेस में हैं। हरियाणा विधानसभा के निवर्तमान अध्यक्ष डा.रघुबीर सिंह कादियान 1987 के दौर में देवीलाल के साथ राजनीति में आए। कादियान हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में डाक्टर थे। कादियान भी उन राजनेताओं में से हैं जोकि देवीलाल के छोटे बेटे से रणजीत सिंह के साथ हो लिए थे, पर आखिर उन्हें कांग्रेस में आना पड़ा। नारनौल से निवर्तमान विधायक राधे श्याम शर्मा आबकारी व कराधान विभाग में अधिकारी थे। सेवानिवृत्ति के बाद वह कांग्रेस से टिकट चाहते थे, पर टिकट न मिलने पर उन्होंने 2005 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की। इलाके में उन्हें राधे श्याम डीटीसी के नाम से ही जाना जाता है। एचसीएस अधिकारी बहादुर सिंह ने साल 2000 विधानसभा में जीत हासिल की और वजीर बने। पर अब वे इनेलो छोड़कर कांग्रेस में आ गए हैं। पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए एच आर स्वान ने दो बार सिरसा संसदीय सीट पर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा। इस समय पूर्व पुलिस महानिदेशक एएस भटोटिया और पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रेशम सिंह भाजपा में हैं। दोनों अफसर भाजपा की चुनाव समिति में हैं। पूर्व पुलिस महानिदेशक महेंद्र सिंह मलिक, पूर्व आईएएस बी डी ढालिया और आर एस चौधरी इनेलो में हैं और इनेलो में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। डा.केवी सिंह 1987 के दौर में सरकारी नौकरी छोड़कर देवीलाल के ओएसडी बने थे। अब केवी सिंह मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के ओएसडी थे। सिरसा जिला में दड़बा उनका विधानसभा क्षेत्र था जहां से उन्होंने चुनाव लड़ा था पर हार गए थे। अब डा. के वी सिंह सिरसा जिले के मंडी डबवाली से कांग्रेस के टिकट पर दावा कर रहे हैं। दड़बा सीट नई हदबंदी में बची नहीं और डबवाली सीट अब आरक्षित नहीं रही। एचसीएस अफसर वीरेंद्र मराठा ने नौकरी से इस्तीफा देकर 2004 में एकता शक्ति नाम से राजनीतिक दल बनाया। एकता शक्ति में कई उतार चढ़ाव आए। मराठा ने कई चुनाव लड़े। आखिरकार 2009 के चुनाव में उन्होंने एकता शक्ति का बसपा में विलय कर दिया और करनाल संसदीय सीट से चुनाव लड़ा पर जीत न सके। बसपा से निकाले जाने के बाद आजकल मराठा इनेलो के संपर्क में है। आईएएस अफसर रघुबीर सिंह ने सेवानिवृत्ति के बाद हविपा की टिकट पर टोहाना विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था पर वह हार गए। रघुबीर सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरपाल सिंह के सगे भाई हैं। केंद्रीय मंत्री सैलजा के जीजा व सेवानिवृत्त आई ए एस आर के रंगा अब कांग्रेस में है और मुलाना या सढौरा विधानसभा सीट से टिकट का दावा कर रहे हैं। हाल ही में सेवानिवृत्त हुए आई ए एस अफसर एचसी दिसौदिया कांग्रेस में हैं और टिकट का दावा कर रहे हैं। सेवानिवृत्त एचसीएस अधिकारी एमएल सारवान भी भी राजनीति में सरगर्म हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें