
दुनिया भर में छायी अमेरिकी मुद्रा डॉलर को अब चुनौती मिलने जा रही है। हाल में अरब देशों ने चीन, फ्रांस और रूस के साथ मिलकर एक गुप्त अभियान शुरू किया है, जिसके तहत तेल के कारोबार में अमेरिकी मुद्रा का प्रयोग बंद कर दिया जाएगा। न तेल की कीमतें डॉलर में तय होंगी और न ही उनका भुगतान अमेरिकी मुद्रा में होगा। पश्चिम एशिया के वित्तीय इतिहास में यह सबसे बड़ा बदलाव होगा जब तेल के कारोबार में डॉलर का इस्तेमाल बंद हो जाएगा। अरब देशों की इस योजना में चीन, रूस और फ्रांस के साथ जापान भी शामिल है। लिहाजा डॉलर के स्थान पर जापानी मुद्रा येन, चीन की युआन, यूरोपीय यूनियन की यूरो, सोना या फिर अरब देशों की प्रस्तावित संयुक्त मुद्रा के इस्तेमाल पर विचार किया जा रहा है। इस नई संयुक्त मुद्रा के जनक देशों में सऊदी अरब, अबुधाबी, कुवैत और कतर शामिल हैं। इस योजना पर काम करने के लिए रूस, चीन, जापान और ब्राजील में वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की गुप्त बैठकें हो चुकी हैं। अरब देशों और चीन के बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े सूत्रों ने इस योजना की पुष्टि की है। संभवत: यही वजह है कि सोने की कीमतों में उछाल आ रहा है और माना जा रहा है कि अगले नौ साल में इस बदलाव को पूरी तरह मूर्त रूप दे दिया जाएगा। खास बात यह है कि भारत और ब्राजील ने भी तेल के गैर-डॉलर भुगतान व्यवस्था से जुड़ने में दिलचस्पी दिखाई है। यह भी गौरतलब है कि ईरान हाल में यह ऐलान कर चुका है कि अब उसके विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की जगह यूरो होंगे। डॉलर का वर्चस्व खत्म करने के लिए विभिन्न देशों के बीच हो रही गुप्त बैठकों से अमेरिका अनजान नहीं है, लेकिन उनमें क्या कुछ चल रहा है इस बारे में उसे पूरी जानकारी नहीं है। जबकि इस योजना में जापान जैसा उसका विश्वस्त सहयोगी शामिल है। यह तो निश्चित है कि अमेरिका इस कोशिश के खिलाफ जमकर लड़ेगा, लेकिन चीन इससे ज्यादा चिंतित नहीं है। उसका मानना है कि जिस तरह यूरो सृजन के दौरान अमेरिका ने ब्रिटेन को अलग रहने के लिए राजी कर लिया था उसी तरह का कोई कदम इस बार कारगर साबित नहीं होगा, क्योंकि वार्ता के स्तर पर वे आगे जा चुके हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें