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मंगलवार, 17 नवंबर 2009

फिर कौन कहेगा, पकी है बासमती!

घर हो या कोई रेस्तरां। खुशबूदार बासमती का लजीज स्वाद अब जल्द ही बीते जमाने की कहानी हो सकती है। थाली में परोसे गए महंगे बासमती चावल का न तो दाना लंबा रहेगा न वह सुगंध, जिसे तपिश मिलते ही पूरे घर में महक जाया करता था। खासकर पंजाब व दक्षिण उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाली मशहूर पूसा सुगंध बासमती व हरियाणा की तारावटी का बासमती चावल अपने स्वाद व खुशबू की पहचान को तरसेगा। बासमती चावल की अधिकतर अच्छी किस्मों की गुणवत्ता व आकार में कमी का कारण मौसम में बदलाव है। इसके उत्पाद वाले क्षेत्रों के तापमान में औसतन एक से दो डिग्री सेल्सियस वृद्धि हो चुकी है। भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र नई दिल्ली के वैज्ञानिकों के लंबे शोध के बाद यही निष्कर्ष निकले हैं। हालांकि केंद्र ने कुछ अर्सा पहले कंट्रोल कंडीशंस स्टडी में यह नतीजा पा लिया था कि महक देने वाले कृषि उत्पाद बढ़ते तापमान के चलते सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, लेकिन हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश में चावल पर खेतों में किए गए व्यावहारिक शोध कृषकों के लिए खतरे की घंटी है
। चावल के साथ-साथ अपनी खुशबू के लिए मशहूर असम की चाय भी अपना जायका खो देगी। दिल्ली के कृषि अनुसंधान केंद्र व असम के टोकलई रिसर्च स्टेशन जोरहट का संयुक्त शोध भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है कि चाय में भी वह बात नहीं रहेगी। दिल्ली के वैज्ञानिकों ने शिमला में पर्यावरण में हो रहे बदलाव पर कृषि उत्पाद में शोध नतीजों को आंकड़ों व तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया। लेकिन तथ्यों का दूसरा पहलू यह भी है कि जिस तरह से भारत में कार्बन डायक्साइड गैस उत्सर्जन बढ़ रहा है उसी के कारण गेहूं ही नहीं बल्कि तेल के बीज का उत्पादन बढ़ेगा। यानी पैदावार तो ज्यादा हो जाएगी, लेकिन गुणवत्ता घट जाएगी। कृषि अनुसंधान केंद्र दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक एच पाठक का कहना है कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण सरसों, सोयाबीन, आलू व गेहूं की पैदावार 7 प्रतिशत कम हो जाएगी और ज्यों-ज्यों तापमान बढ़ेगा फसल कम होती जाएगी। और ठीक 11 वर्ष के बाद 2020 में इसका असर तेजी से दिखेगा व 2100 में यह उत्पादन 40 फीसदी घट चुका होगा। कुल मिलाकर भारत की अगली पीढ़ी को सब्जियां, चावल, सरसों जैसी फसलें सहज ही उपलब्ध नहीं होगी। सबसे ज्यादा असर धान पर होगा। धान का आकार व गुणवत्ता दोनों नष्ट हो जाएंगी। शोध बताता है कि हरियाणा व पंजाब की पूसा सुगंध बासमती (1121), न्यूनतम व अधिकतम का औसतन तापमान यदि 25 से 26 डिग्री सेल्सियस से एक डिग्री भी ज्यादा जाता है तो इस धान में न तो महक होगी न ही पकने पर चावल का दाना अलग अलग खिलेगा। यह वही किस्म है जिसकी उत्तरी भारत के किसानों को सबसे ज्यादा आमदनी होती है। तारावटी व पूसा की धान की कीमत ही 2300 रुपये प्रति क्विंटल मिलती है। जबकि अमूमन धान करीब 800 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है। चावल की यह किस्में एक हेक्टेयर में पांच टन पैदा होती है, लेकिन किसानों को मालामाल करने वाला यह सफेद सोना अब फायदे का सौदा नहीं रहने वाला। दिल्ली के कृषि अनुसंधान केंद्र ने देश में होने जा रहे अन्न संकट के पीछे वैज्ञानिक तर्क देते हुए खतरे से आगाह भी किया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि पर्याप्त बारिश न होने से सूखे व अकाल की नौबत आ चुकी है। गत 50 साल में देश में 15 बड़े अकाल पड़ चुके हैं। इसके कारण बारिश से पनपने वाली फसलें तबाह हुई हैं। हर 8 से 9 वर्ष में एक तेज सूखे ने फसलों की तबाही के साथ भुखमरी की नौबत भी लाई है। केंद्र के वैज्ञानिक बताते हैं कि पूरे भारत में वर्ष 2020 तक 0.5 से 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ जाएगा, वर्ष 2050 में यह 3.16 डिग्री सेल्सियस वृद्धि तापमान में होगी। रबी से मौसम, अर्थात सर्दी में यह तापमान और बढ़ेगा जबकि वर्षा के मौसम (खरीफ) में यह कम बढ़ेगा। शोध रबी की फसल के लिए अत्यंत चिंताजनक है। एच पाठक कहते हैं कि 1, 2 या 3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा तो धान की पैदावार क्रम से 5.4 प्रतिशत, 7.4 व 25.1 फीसदी कम हो जाएगी।

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