
आप अपने बचपन को याद कीजिए। बचपन म्ों चले जाईए। स्कूल के वो दिन याद करें, जब हर शनिवार को आधी छुट्टी के बाद बाल सभा होती, बाल सभा की तैयारी जोरों से की जाती। याद करें वो नजारा, जब मास्टर जी नाम पुकारते और कविता, कहानी, चुटकुले आदि पढने के लिए बाल सभा म्ों बकायदा बुलाते। याद करें उस लम्हे को जब मास्टरजी उन दोस्तों को जबरन बाल सभा म्ों खड़ा कर बुलवाते, कुछ भी कहने के लिए प्रेरित करते... याद आयार्षोर्षो अगर आप को याद आ रहा है, तो आप के सामने वो सारे पल आ रहे होंगे, जब बाल सभा होती थी। पूरे सप्ताह आपको और आपके दोस्तों को शनिवार का इंतजार रहता इंतजार रहता। जिससे बच्चों की प्रतिभाओं को विकसित करने के लिए, व्यक्तित्व विकास के लिए एक मंच का काम करतीं।
ये षब्द विद्यालय निदेषक एवं प्राचार्य आचार्य रमेष सचदेवा ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए नटखट संस्था द्वारा आयोजित बाल दिवस के कार्यक्रम में कहे।
उन्होंने कहा कि बाल सभा, नाम से ही स्पष्ट है, बच्चों का कार्यक्रम। चूंकि बच्चों की बात उठती है, तो सहज म्ों ही चाचा नेहरू याद आ जाते। बाल सभा म्ों बच्चों के व्यक्तित्व विकास के बहाने, प्रतिभा निखारने के बहाने चाचा नेहरू को याद कर लिया जाता।
वक्त बदला, वक्त ने अपनी चाल बदली और हर शनिवार होने वाली बाल सभा महिने के आखरी शनिवार को होने लगी और कब यह बाल सभा का क्रम समाप्त हो गया, पता ही नहीं चला। अधिकांश स्कूलों म्ों अब बाल सभाएं नहीं होती। बाल सभा नहीं होती तो बच्चों के चाचा नेहरू याद नहीं आते और याद आते हैं, तो अब केवल एक ही दिन बाल दिवस पर। वह भी रस्म अदायगी और दूसरे ही दिन बच्चे चाचा नेहरू को भूला-बिसार दें, तो इसम्ों आष्चर्य ही क्यार्षोर्षो एक तो बाल सभा अब होती नहीं और चाचा नेहरू को याद करने का वक्त ही नहीं। रही सही कसर टीवी ने पुरी कर दी और टीवी म्ों भी बच्चे कार्टून म्ों रम जाते।
अब हालात ये बनते है कि चाचा नेहरू अब बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू नहीं रहे, अब स्पाईडर म्ौन, सुपर म्ौन आदि कार्टून पात्र उन्हें आकषिZत करते हैं। यहाँ यही समझ आता है कि बाल सभा की इस टूट चुकी कड़ी के बीच बच्चों को चाचा नेहरू को याद रखना है, तो माय फ्रैंड गणेशा, कृष्णा, हनुमान की तरह चाचा नेहरू को भी बच्चों के सामने लाना होगा, नहीं तो साल म्ों एक बार बाल दिवस मना लिया और बाल सभा तो होती नहीं, इसलिए एक दिन चाचा नेहरू याद आते रहेंगे, और बच्चे उन्हेें भुलाते-बिसराते रहेंगे।
इस अवसर पर हर कक्षा के मॉनिटर को विद्यालय की ओर से 100-100 रूपये दिए गए थे ताकि बच्चे अपना कार्यक्रम स्वयं आयोजित करना सीखें और बजट बनाना व खर्च करने सीखें। जहां बड़े बच्चों ने छोटों को गुब्बारे व टाफियां बांटी वहीं अधिकांा कक्षाओं ने अपनी-अपनी कक्षा के लिए डिक्षनरी खरीद कर इस आयोजन को सार्थक बनाया।
बच्चों ने देष-भक्ति के गीतों पर नृत्य प्रस्तुत कर कार्यक्रम के उल्लास को कायम रखा। कार्यक्रम का संचालन प्रेरणा बतरा व मास्टर धनंजय तथा इतिहास के अध्यापक केषरा राम ने किया।
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