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सोमवार, 16 नवंबर 2009

हमसे पहले मछलियों को मिली ई पहचान


भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के जरिये की जा रही सरकारी कोशिशें रंग लाई तो जल्दी ही हर हिंदुस्तानी की एक खास पहचान तय हो जाएगी। लेकिन इस मामले में हमसे आगे समुद्रों में रहने वाले जीव-जंतु निकले। भारतीय वैज्ञानिकों ने 15 हजार तरह के समुद्री जीवों की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग पूरी कर ली है। लगातार बढ़ते प्रदूषण की वजह से भारी खतरे का सामना कर रहे समुद्र-जीवन में जैव विविधता को बरकरार रखने में इससे काफी मदद मिलेगी। समुद्र में रहने वाले मछली, घोंघे, केकड़े, सीप और झींगे जैसे 15 हजार तरह के जीवों की यह जन्मकुंडली बनाई है गोवा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ ओशनोग्राफी के वैज्ञानिकों ने। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के नेतृत्व में चलने वाले इस संस्थान की इस जीव-गणना के आंकड़े न सिर्फ समुद्री जीवन को समझने में हमारी मदद करेंगे, बल्कि जैव विविधता को भी कायम रख सकेंगे। इन समुद्री जीवों की पहचान को एक खास बारकोड दिया गया है और अब इस पूरी जानकारी को इंटरनेट के जरिये आम लोगों के लिए भी उपलब्ध करवा दिया जाएगा। इसका मकसद यह है कि इन जीवों में आम लोगों की दिलचस्पी बढ़े और बिगड़ते पर्यावरण के असर से इन्हें हर मुमकिन सुरक्षा मिल सके। हिंद महासागर समुद्र जीव गणना कार्यक्रम के प्रमुख मोहिदीन वाफर बताते हैं कि इस पूरी कवायद की मदद से पहली बार समुद्री जीवों का व्यापक जैव-भौगोलिक सूचना तंत्र विकसित करने में कामयाबी मिली है। अब पलक झपकते ही जाना जा सकता है कि कौन सा जीव किन-किन इलाकों में और समुद्र में किस गहराई पर मौजूद है। यह भी जाना जा सकता है कि समय के साथ इनके अस्तित्व पर क्या असर पड़ा है। मौजूदा आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने हर प्राणी के बारे में यह भी जानने की कोशिश की है कि इंसानी और कुदरती कारणों से आने वाले समय में इनको क्या खतरे हो सकते हैं। बहुत सी ऐसी प्रजातियों का पता चला है, जो अब पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं। साढ़े पांच हजार ऐसे नए जीवों का भी पता चला है, जिनके बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं थी।

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