नई दिल्ली सरकार के खजाने पर नये बोझ की तैयारी और उसके बाद भी नाक कटने की नौबत! कॉमनवेल्थ खेल का यह ताजा सूरते हाल है। अंतरराष्ट्रीय कॉमनवेल्थ समन्वय
आयोग इस दो टूक नतीजे पर पहुंचा है कि तैयारियों के लिए संसाधन जुटाने के दावे बिखर रहे हैं और खेलों से जुड़ी तकनीकी तैयारियां गंभीर जोखिम में है। यानी खेलों की तैयारियों को लेकर केंद्र के खजाने पर बोझ बढ़ने वाला है। जबकि इसके सबके बावजूद तकनीकी तैयारियों में देरी स्पर्धाओं के दौरान मुल्क को शर्मिदा कर सकती है। मेजबान राज्य की मुख्यमंत्री होने के नाते शीला दीक्षित का बेचैन होना लाजिमी है मगर अफसोस! यह रिपोर्ट उन्हें और नर्वस करेगी। इस रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार में भी चिंताओं का पारा ऊंचा होना चाहिए। सुरेश कलमाड़ी के नेतृत्व वाली आयोजन समिति के दावों की हकीकत परखते हुए कॉमनवेल्थ खेल संघ इस नतीजे पर पहुंचा है कि तैयारियों में बहुआयामी समस्यायें और जबर्दस्त जोखिम हैं। कई अहम पहलुओं पर रिपोर्ट में जो सूरते-हाल सामने आई उसे देखकर प्रतिभागी देश बिदक सकते हैं। कॉमनवेल्थ समन्वय आयोग की ताजी समीक्षा रिपोर्ट तैयारियों के बुरी तरह बदहाल होने की अंतरराष्ट्रीय पुष्टि है। स्टेडियमों के निर्माण से लेकर वित्तीय इंतजाम और टाइम स्कोरिंग जैसी उच्च तकनीकी प्रणालियों तक हर मोर्चे पर आयोजन के इंतजामकर्ता बुरी तरह असफल हैं। वित्तीय चुनौती : वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को इन खेलों में देश की नाक बचाने के लिए और पैसा देने की तैयारी शुरु देनी चाहिए। समन्वय आयोग से चर्चा में आयोजन समिति ने साफ कहा है कि उसका हिसाब किताब बदहाल हो रहा है। रिपोर्ट नोट करती है कि समिति खेलों के लिए संसाधनों को लेकर केंद्र पर निर्भर है। प्रायोजकों को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। आयोजन समिति के पास खेलों पर खर्च का स्पष्ट आकलन तक नहीं है न ही कैश पूलो का हिसाब-किताब है। रिपोर्ट कई अहम पहलुओं पर खर्च बढ़ने की आशंकाओं को भी रेखांकित करती है। और तकनीक भी : तकनीक खेलों में हर स्तर पर सेवाओं से जुड़ी है। यह गहरे जोखिम का क्षेत्र है और आयोजन समिति के पास तकनीकी क्षमता नहीं है। किसी मेजबान देश के लिए यह बहुत तीखी टिप्पणी है। यानी स्पर्धाओं के दौरान तकनीकी खामियों के कारण आयोजन समिति धावक या तैराक से कहना पड़ सकता है .. कृपया एक बार फिर। समन्वय आयोग की रिपोर्ट इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा मुखर और दो टूक है। इन तैयारियों पर आयोजन समिति का इतिहास भयानक चूक से भरा है और समन्वय आयोग मान रहा है कि इसमें अब खर्च भी ऊपर जा सकता है।

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