नई दिल्ली, भगीरथी के दामन से प्रदूषण के दाग धोने पर अरबों रुपया बहाने के बावजूद सरकार के तथ्य बताते हैं कि गंगोत्री से लेकर डायमंड हार्बर के बीच अधिकतर स्थानों पर गंगा जल से दूर रहने में भलाई है। वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश 30 दिसंबर को वाराणसी में गंगा नदी के प्रदूषण की समीक्षा करेंगे। वह गंगा के उन घाटों का भी मुआयना करेंगे जहां नाले शहर की गंदगी को नदी में उड़ेलते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आंकड़े बताते हैं कि बनारस के अस्सीघाट पर बीते दो सालों में प्रदूषण का पैमाना कहलाने वाले बीओडी का स्तर कभी भी 3 मिग्रा प्रति लीटर की नियत सीमा तक कम नहीं रहा। बनारस हो या संगम स्थली इलाहाबाद, बीते बारह बरस में पानी का स्तर साफ डी श्रेणी से ऊपर नहीं उठ पाया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पानी के वर्गीकरण के तहत डी श्रेणी का पानी केवल जानवरों के लिए ही मुफीद है। गंगा एक्शन प्लान के नाम पर 800 करोड़ रुपये बहाने के बावजूद गंगा को प्रदूषण मुक्ति में नाकाम रही सरकार खुद संसद में स्वीकार कर चुकी है कि अधिकांश स्थानों पर पानी में मौजूद कोलीफार्म का स्तर निर्धारित सीमा से काफी ज्यादा है। कोलीफार्म की निर्धारित सीमा प्रति 100 मिली पानी में 2500 एमपीएन (सर्वाधिक संभावित संख्या) है। पर्यावरण मंत्रालय मानता है कि ऋषिकेश से लेकर बंगाल के उलबेरिया के बीच सोलह में सात स्थानों पर गंगा का पानी नहाने योग्य नहीं है। इस बारे में बीते दिनों संसद में एक सवाल के जवाब में पर्यावरण मंत्रालय का कहना था कि पानी में कोलीफार्म का स्तर नदी स्नान के कारण बढ़ रहा है और केवल हरिद्वार ही ऐसा स्थान है जहां इसकी मात्रा निर्धारित सीमा में है। इस संबंध में आईआईटी, कानपुर, बीएचईएल और पटना विश्वविद्यालय का अध्ययन बताते हैं कि घुलित आक्सीजन और बीओडी के स्तर में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन कन्नौज से लेकर वाराणसी के बीच स्थिति खराब बनी हुई है।
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