डबवाली-शिक्षा क्यों व कैसे के मूल मंत्र का विश्लेषण करते हुए मैमोरी 'एनएम के मेंटर सूरज मैहता ने कहा कि ऐसी कोई कमी नहीं कि इस क्षेत्र के बच्चे शिक्षा के किसी भी मुकाबले में पीछे रह जाऐं परन्तु जरूरत है एक उचित मार्गदर्शन की तथा उचित प्रशिक्षण की ये शब्द उन्होंने स्थानीय एचपीएस सीनियर सैकेंडरी स्कूल द्वारा गत शाम आयोजित मैमोरी विकास एवं गणित दक्षता विषय पर आयोजित सेमीनार में बोलते हुए कहे। उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा पद्धति से पूर्व गुरूकुल पद्धति में सारी की सारी शिक्षा मौखिक रूप से दी जाती थी यहां तक की वेद की ऋचांए भी गुरूजन कण्ठस्थ करवा देते थे। परन्तु भारत को गुलाम बनाने के लिए अंग्रेजों ने अपने वहां के महान् शिक्षाविद्द तथा मनोवैज्ञानिक लार्ड मैकाले को जब यह कार्य सौंपा कि किस प्रकार भारत को पूर्ण रूप गुलाम बनाया जा सकता है ताकि वे भी मुगलों तथा मुस्लमानों की तरह वहां के ही ना होकर रह जाऐं। इसके लिए मैकाले ने एक सर्वक्षेण के पश्चात ने यह बताया कि वहां कि गुरूकुल पद्धति अर्थात् शिक्षा पद्धति को भेदना होगा और बाद में अंग्रेजों ने उन्हें इस कार्य को करने का कार्यभार सौंपा और लॉर्ड मैकाले ने भारत में ऐसी शिक्षा पद्धति दी कि जिससे यहां केवल नौकर ही नौकर पैदा हों और आज उसी का ही दुष्परिणाम है कि यदि किसी भी विद्यार्थी से अथवा अभिभावक से सवाल किया जाए कि सॉरी शिक्षा ग्रहण करने के बाद अंतिम लक्ष्य क्या है तो एक ही उतर मिलता है कि कैसे भी एक अच्छी से नौकरी मिल जाए। उन्होंने कहा कि अब युग बदल रहा है भारत जो इस वक्त विश्व की एक बार फिर नैतिक और शैक्षिक रूप में सिरमौर शक्ति बनने जा रहा है ऐसे में बच्चों की मानसिक क्षमता के सदुपयोग करने वाली विधाओं का विकास करना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में तो हम अपने मस्तिष्क का केवल 0.01 प्रतिशत भाग ही प्रयोग कर पाते हैं और शेष को कैसे प्रयोग करना है इसके लिए हमें उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता। ऐसे में उन्होंने मैमोरी बढाने के लिए 16 घण्टे के प्रशिक्षण से जादू जैसे परिणाम देने की बात कही और उसके अचूक नमूने भी प्रस्तुत किए जिसमें 10वीं कक्षा के मास्टर नीतिश तथा मास्टर मनोज ने 100 शब्दों को केवल मात्र सुनकर उनसे सम्बन्धित सभी सवालों का अचूक उत्तर दिये और यहां तक की 10वीं कक्षा की विज्ञान के प्रथम 100 पृष्ठों से पूछे गए सवालों का भी अचूक उत्तर देकर उपस्थित सैंकडों अभिभावकों व विद्यार्थियों को दाँतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया। लगभग 2 घंटे चले इस सेमिनार में अभिभावकों ने तथा विद्यार्थियों ने जमकर आनंद लिया। मेंटर सूरज मैहता ने वैदिक गणित के माध्यम से अनेकों जोड़, गुणा, भाग, वर्ग तथा क्यूब के सवालों को सैंकण्डों में हल करके जब दिखाया तो उपस्थित जनसमूह ने एक स्वर में कहा कि मान गए उस्ताद। इस अवसर पर बोलते हुए मैमोरी 'एनÓ एम टीम के प्रवक्ता विशाल वत्स ने कहा कि एचपीएस के माध्यम से उनका यह लक्ष्य रहेगा कि इस क्षेत्र में आने वाले दिनों में आईएएस की बाढ से आ जाए और यह क्षेत्र एचपीएस के सपनों के अनुरूप विचारों से भी तीव्र गति में शिक्षण मुहैया करवाने के उद्देश्यों की भांति अग्रसर हो। माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ आरम्भ हुए इस सेमिनार में अभिभावकों में से डा. योगेश गुप्ता ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज के सेमिनार से उन्हें लगा है कि जिस प्रकार वे एक बैंच पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं आज उनके बच्चे एचपीएस में उस लीक से हटकर केवल साक्षर नहीं होंगे अपितु जीवन में सक्षम बनेंगे। चार्टड एकाउण्टैंट एम. एल. ग्रोवर ने कहा कि प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए एचपीएस का यह प्रयास सराहणीय है तथा इसे अभिभावकों के लिए भी शुरू किया जाए। क्रियात्मक शिक्षण के लिए विख्यात नरेश शर्मा ने कहा कि सर्वांगीन विकास की जो बात हम अक्सर करते हैं उसके लिए ऐसे प्रयोगों का लागू होना अति आवश्यक है और एचपीएस इसके लिए बधाई का पात्र है। मुख्याध्यापक सुलतान सिंह वर्मा ने कहा कि एचपीएस का आज का यह सेमिनार देखकर लगता है कि अब बच्चों को कोटा, चण्डीगढ़ अथवा दिल्ली आदि जाने की जरूरत नहीं क्योंकि एचपीएस अपनी कथनी व करनी के अनुरूप बच्चों के विकास के लिए पूर्ण से सेवारत है। महेश शास्त्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्कूली शिक्षा के इलावा भी बच्चों के अंदर जो सीखने की ललक रहती है तथा अपने समय का सदुपयोग करने की जो जिद्द बनी रहती है वह पूरी कैसे हो सकती है तथा उसके लिए ऐसी अनूठी शिक्षण विधा का एचपीएस ने योजनाबद्ध करके बच्चों को सकारात्मक सोच बनाने का भी कार्य किया है। आचार्य रमेश सचदेवा ने कार्यक्रम का समापन करते हुए कहा कि आज के पाठ्यक्रम बहुत ज्यादा नहीं है क्योंकि बच्चों की स्मरण शक्ति का सदुपयोग नहीं हो पाता है इसलिए एचपीएस केवल बच्चों को ही नहीं अपने सभी अध्यापकों को भी यह प्रशिक्षण दिलवाएगा तथा प्रयास रहेगा कि बच्चे व अध्यापक वर्ग इस प्रशिक्षण को लेकर अपने पाठ्यक्रम के बोझ से तो मुक्त हो ही साथ-ही-साथ सीबीएसई की सीसीई प्रणाली का पूरा-पूरा लाभ ले सके और उसका सर्वांगीण विकास हो सके। कार्यक्रम के अंत में मैमोरी 'एनÓ एम की टीम के सभी सदस्यों को डा. प्रेम चंद सचदेवा मैमोरियल समिति की ओर से महेन्द्र सचदेवा, डा. योगेश गुप्ता, एम.एल ग्रोवर व सुलतान सिंह वर्मा की ओर से स्ृमृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
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सोमवार, 8 नवंबर 2010
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