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शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

कभी दुर्गा, कभी मोहिनी





मार्क टली को सोनिया गांधी में इंदिरा की छाप दिखती है.



इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कितने विशेषण दिए गए थे जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के ज़ोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी.

भारत के किसी अन्य प्रधानमंत्री से लोग इतना भय नहीं खाते थे जितना उनसे लेकिन यहां मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि वो बहुत मोहक भी हो सकती थीं. और इंदिरा गांधी के साथ भेंट ऐसी भी हो सकती थी जैसी किसी प्राध्यापिका की फटकार.

वो आमतौर पर विदेशी संवाददाताओं के प्रति अपनी विकारत को छिपाने का कोई प्रयास नहीं करती थीं. उनके बारे में उनकी राय थी कि वो हमेशा भारत को ग़लत ढंग से प्रस्तुत करते हैं. लेकिन उन्होने मुझे जो अंतिम इंटरव्यू दिया उसके अंत में मुस्कुराते हुए कहा था, “आप अपना टेप रेकार्डर बंद कर दीजिए और फिर बहस करते हैं कि आपके विचार में इस देश में क्या हो रहा है”.

इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता मज़बूत करने में वक़्त लगा. जब वो प्रधानमंत्री बनी थीं तो शुरु के दिनों में संसद में विपक्ष उनसे बहुत सवाल जवाब किया करता था. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया उन्हे ‘गूंगी गुड़िया’ कहा करते थे. जब कभी वो लड़खड़ातीं तो उनके सहयोगी नोट लिख लिख कर उन तक पहुंचाते कि वो क्या जवाब दें.

सरकार में मौजूद सहकर्मी ऐसा व्यवहार करते थे जैसे वो उनके हाथों में मिट्टी हों जिसे वो जैसे चाहे ढाल लें. लेकिन अंत में इंदिरा गांधी ने कॉंग्रेस के मुखियाओं को चुनौती देकर और पार्टी का विभाजन करके वो साहस दिखाया जो उनके कार्यकाल के दौरान उनकी पहचान बन गया.

उन्होने समय से पहले चुनाव की घोषणा की और उन्हे बुरी तरह हराया जिन्होने उन्हे आंकने में भूल की थी. जब पाकिस्तान की सेना ने ढाका में भारतीय सेना के आगे आत्म समर्पण किया और एक नए राष्ट्र बांगलादेश का जन्म हुआ तो इंदिरा गांधी की सत्ता पर सवाल उठने बिल्कुल बंद हो गए.

लेकिन बांगलादेश की लड़ाई के बाद के सालों में इंदिरा गांधी ने दिखाया कि ज़रूरी नहीं कि सत्ता और सुशासन हमेशा साथ साथ चलें. सत्तर के दशक में उनकी वामपंथी आर्थिक नीतियों ने देश को लाल फीताशाही में बांध दिया.

इंदिरा गांधी ने इस बात की अनदेखी की, कि केन्द्रीकृत योजना, उससे उपजी नौकरशाही और उससे निजी पहल के क्षेत्र में जो बाधाएं आती हैं, दूसरे देश इन सब को नकार चुके हैं. वो उस भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाईं जो लाल फीताशाही के साथ आता है और भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को भी रोकने में असफल रहीं.

अपने को बचाने के लिए उन्होने अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के सभी सिद्धांतो के ख़िलाफ़ जाकर देश में आपात काल की घोषणा कर दी जिससे देशवासियों की आज़ादी पर पहरा लग गया और प्रशासन की ताक़त और बढ़ गई.

फिर 1977 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी की ज़बरदस्त हार के बाद आपात काल का अंत हुआ. जब वो फिर सत्ता में आईं तो उन्हे दोबारा उथल पुथल का सामना करना पड़ा. मुम्बई में मज़दूरों का विद्रोह, असम में जातिवादी तनाव, नक्सलवाद का पुनरुत्थान और पंजाब में उथल पुथल जिसका अंत ऑपरेशन ब्लू स्टार और उनकी हत्या के साथ हुआ.

कांग्रेस पर पकड़

इंदिरा गांधी अपने बेटों के साथ



उन्होने कॉंग्रेस पार्टी पर अपनी पकड़ और कस ली और मनमाने ढंग से राज्य सरकारों को बरख़ास्त करके विपक्ष को कमज़ोर करने के प्रयास किए. लेकिन उनकी मुश्किलों का अंत नहीं हो सका.

इन सब मुश्किलों के बावजूद जिन्होने उन्हे देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रचार करते देखा था वो जानते थे कि देश की ग़रीब जनता पर उनकी कितनी गहरी पकड़ थी.

मेरी नज़र में इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी ग़लती ये थी कि वो भूल गईं कि तानाशाह शासकों की तानाशाही उनके नीचे काम करने वालों तक पहुंचती है. और जैसे जैसे वो नीचे की ओर उतरती जाती है उसका ग़लत इस्तेमाल बढ़ता जाता है.

उन्होने प्रशासनिक सेवाओं को अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया और उन्होने ‘लाइसेंस परमिट राज’ बना लिया और उसके साथ फैला भ्रष्टाचार. उन्होने पुलिस को उनके विरोधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के अधिकार दिए और पुलिस उसका इस्तेमाल जिस तिस को गिरफ़्तार करने के लिए करने लगी.

उन्होने निचले दर्जे की समूची नौकरशाही को परिवार नियोजन लागू करने का अधिकार दिया और उसका नतीजा हुआ अनिवार्य नसबंदी अभियान. उन्होने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को उनके नाम पर काम करने का अधिकार दिया और उन्होने कॉंग्रेस पार्टी में बचे-खुचे लोकतंत्र को भी नष्ट कर दिया.

वो सभी संस्थाएं जिन्हे सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकना चाहिए उनकी अवमानना हुई. फिर भी इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इंदिरा गांधी एक साहसी महिला थीं और देश की ग़रीब जनता के दिल में उनके लिए विशेष स्थान था.

ग़रीबों के लिए संघर्ष करने की उनकी छवि के कारण ही नेहरू गांधी वंश इतने लम्बे समय तक टिक पाया है. जिसने भी सोनिया गांधी को अभियान के दौरान देखा है वो मानेगा कि वो अपनी सास की नक़ल करती हैं, उन्ही की तरह तेज़ चलती हैं, हाथ हिलाती हैं, हथकरघे से बुनी साड़ियां पहनती हैं और आक्रामक भाषण देती हैं.

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