
हादसे के बाद सरकारी अमले को सुरक्षा मजबूत करने की सुध आई
---------------------------------------------
देश में 21 रिफाइनरियां, 300 से ज्यादा तेल व गैस डिपो तथा हजारों रसोई गैस एजेंसियों के स्टोर का विशाल नेटवर्क। इन सबके बावजूद सुरक्षा के ऐसे इंतजाम कि माचिस की एक चिंगारी से न केवल सैकड़ों लोग काल के गाल में समा जायें बल्कि अरबों रुपये की हानि भी देश को उठानी पड़े। जयपुर स्थित इंडियन आयल के तेल डिपो में लगी आग केवल एक बानगी है कि इतने महत्वपूर्ण व संवेदनशील स्थानों पर सरकार के सुरक्षा इंतजाम कितने कमजोर हैं। ये हालात तब हैं जब केवल पेट्रोलियम भंडारण के स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए बहुत ही बड़ा सरकारी अमला लगा हुआ है। जयपुर से लौटे पेट्रोलियम मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि पेट्रोलियम क्षेत्र में हमने सुरक्षा को कभी वह महत्व दिया ही नहीं जिसकी जरूरत होती है। इस बारे में कड़े मानक हैं, लेकिन उनका पालन नहीं हो पाता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डिपो पर सुरक्षा संबंधी मानकों का उल्लंघन किया जाता है। शुरुआती तथ्य से ऐसा लगता है कि जयपुर हादसा के पीछे कोई मानवीय भूल वजह रही है। लिहाजा आने वाले दिनों में मानवीय भूल की संभावनाओं को भी न्यूनतम करने के लिए कदम उठाने होंगे। सबसे पहले तो पेट्रोलियम क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था का मानकीकरण करना होगा। इसके लिए तेल उद्योग सुरक्षा महानिदेशालय (ओआईएसडी) को कानूनी अधिकार देना होगा। ओआईएसडी पेट्रोलियम कंपनियों के लिए सुरक्षा मानक तय करता है लेकिन उसके पास अपने मानकों को लागू करवाने का कानूनी अधिकार नहीं है। पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अब ओआईएसडी को कानूनी अधिकार देने पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। अभी तक सरकारी तेल कंपनियां इस प्रस्ताव का विरोध कर रही थी। उनका कहना था कि इससे उनके अधिकार का हनन होगा। लेकिन सरकार की मंशा ओआईएसडी के मानकों को सरकारी व निजी कंपनियों के लिए अनिवार्य करने की है। जयपुर कांड से तेल डिपो की स्थापना के लिए स्थान के चयन को लेकर भी दोबारा विचार करने की जरूरत है। दरअसल, अधिकांश डिपो आज से 15-20 वर्ष पहले बनाए गए और उस समय उन्हें आबादी से दूर बनाया गया लेकिन इस दौरान बस्ती धीरे-धीरे इन डिपो के आस-पास के इलाकों में पहुंच गई है। जयपुर की घटना ने साबित कर दिया है कि आबादी के करीब होने से नुकसान की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुंबई, दिल्ली, चेन्नई स्थित पेट्रोलियम उत्पादों के डिपो आबादी से बेहद करीब हैं। उक्त अधिकारी के मुताबिक पेट्रोलियम क्षेत्र में आग पर पहले कुछ घंटे में ही काबू नहीं हो पाता तो इसमें काफी मुश्किलें आ जाती हैं। लिहाजा यह व्यवस्था करनी होगी कि अगर किसी डिपो में आग लगती है तो उस पर शुरुआत में ही काबू किया जाए। इसके अलावा पेट्रोलियम आग को बुझाने के लिए आवश्यक पदार्थो (फोम, रसायनिक पाउडर और पेट्रोलियम जेली) का स्टाक भी बढ़ाना होगा। यदि जयपुर में लगी आग को बुझाने के लिए फोम, पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल होता तो देश में इनके कुल स्टाक का आधा खत्म हो जाता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें