IMPORTANT-------ATTENTION -- PLEASE

-----------------------------------"यंग फ्लेम" परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। "यंग फ्लेम" परिवार आपका अपना परिवार है इसमें आप अपनी गजलें, कविताएं, लेख, समाचार नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते है तथा विज्ञापन का प्रचार कम से कम शुल्क में संपूर्ण विश्व में करवा सकते है। हर प्रकार के लेख, गजलें, कविताएं, समाचार, विज्ञापन प्रकाशित करवाने हेतु आप 093154-82080 पर संपर्क करे सकते है।-----------------------------------------------------------------------------------------IF YOU WANT TO SHOW ANY KIND OF VIDEO/ADVT PROMOTION ON THIS WEBSITE THEN CONTACT US SOON.09315482080------

Young Flame Headline Animator

शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

परंपरा के मरहम से भरेंगे धरती के घाव


जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से धरती को बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। सभी देश इसे महसूस कर रहे हैं। लेकिन कोई सर्वमान्य रास्ता नहीं सूझ रहा है। ऐसे में क्या परंपरा के मरहम से धरती के घाव भरे जा सकते हैं और उसे फिर से उसके मूल स्वरूप में लौटाया जा सकता है? कोई माने या न माने, अपने देश के आदिवासियों का ऐसा ही मानना है। लेकिन उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए अगर उन्हें पूरी छूट दी जाए तो वह अपने परंपरागत ज्ञान और दक्षता से धरती के जख्म ठीक कर सकते हैं। हाल ही में देश भर के आदिवासी समूहों ने एक घोषणापत्र जारी किया जिसमें उन्होंने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए समाधानों का जिक्र किया है। ये समाधान उनके परंपरागत ज्ञान और पारिस्थितिकी से करीबी संबंधों पर आधारित हैं। इन समूहों में हर वर्ग जैसे कृषि, वानिकी, चारागाह और मत्स्य क्षेत्र से जुड़े आदिवासी शामिल थे। बैठक में एकमत से चेतावनी दी गई कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के नाम पर परंपरागत ज्ञान और प्राचीन विधियों को हटा कर नई प्रौद्योगिकियां अपनाने से हालात केवल बिगड़ेंगे, सुधार नहीं होगा। नगालैंड एक आदिवासी वेचितियु कहते हैं, हमारा समुदाय जलवायु परिवर्तन के संकट के लिए जिम्मेदार नहीं है। लेकिन हम अपनी महारत से इसका हल निकाल सकते हैं। हम ऐसा करने के लिए पूरी छूट चाहते हैं और हमें अवांछित नीतियों के माध्यम से कोई हस्तक्षेप भी नहीं चाहिए। एक अन्य महिला तनुश्री ने बताया हमारी परंपरागत जल प्रबंधन प्रणाली हमारे जलस्रोतों को स्वच्छ बनाए रखती है। इस संसाधन का हम चतुराई से इस्तेमाल करते हैं जिससे भूजल पर कोई दबाव नहीं पड़ता। यही वजह है कि हमें सूखे और जल संकट के दौरान समस्या नहीं होती। तनुश्री पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन इलाके में रहती है। मुन्नार की खाड़ी से आई एक मछुवारन सेल्वी ने कहा कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से अधिक दोहन किया जा रहा है। ए संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं और कुछ मामलों में नष्ट भी हो चुके हैं। इससे हमारे सामने संकट उत्पन्न हो गया है। सेल्वी ने कहा हमारे पास परंपरागत सुरक्षा के लिए बालू के टीले हैं, समुद्री तट हैं हरे-भरे जंगल हैं और कोरल रीफ भी हैं। यह सब कुछ पीढि़यों की विरासत है। हम इन संसाधनों के संरक्षण का महत्व केवल सह अस्तित्व के लिए ही जरूरी नहीं समझते बल्कि मौसम के मिजाजों से बचाव के लिए दीर्घकालिक उपायों के तौर पर भी इनकी जरूरत है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

SHARE ME

IMPORTANT -------- ATTENTION ---- PLEASE

-----------------------------------"यंग फ्लेम" परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। "यंग फ्लेम" परिवार आपका अपना परिवार है इसमें आप अपनी गजलें, कविताएं, लेख, समाचार नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते है तथा विज्ञापन का प्रचार कम से कम शुल्क में संपूर्ण विश्व में करवा सकते है। हर प्रकार के लेख, गजलें, कविताएं, समाचार, विज्ञापन प्रकाशित करवाने हेतु आप 093154-82080 पर संपर्क करे सकते है।-----------------------------------------------------------------------------------------IF YOU WANT TO SHOW ANY KIND OF VIDEO/ADVT PROMOTION ON THIS WEBSITE THEN CONTACT US SOON.09315482080------

SITE---TRACKER


web site statistics

ब्लॉग आर्काइव

  © template Web by thepressreporter.com 2009

Back to TOP