
पांच-पांच रुपये के लिए यहां जिंदगी को जोखिम में डाला जाता है। रोजी का जुगाड़ कब किस पर मौत का पहाड़ बनकर टूटे किसी को पता नहीं। पल भर में जिंदगी यहां हमेशा के लिए दफन हो सकती है.. लेकिन मजबूरी ऐसी कि मौत के डर को भी यहां जिंदगी की जद्दोजहद में हंस कर भुलाना पड़ता है। मिनी मेट्रो कहलाने वाले इस शहर में रोज जिंदगी को जोखिम में डाल कर मेहनत के पसीने से पेट की आग बुझाने वाले ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं। कभी इनकी जिंदगी को करीब से देखना हो तो बिष्टुपुर वोल्टास बिल्डिंग से दिखने वाले छाई के पहाड़ (कंपनी से निकलने वाले अयस्क के अवशेष से बने पहाड़) पर चले जाएं। यहां आपको पांच-पांच रुपये के लिए छाई की खाई में जिंदगी की परछाई तलाशते लोगों की अच्छी खासी तादाद देखने को मिल जाएगी। छाई के पहाड़ को खोद कर ये अपनी जिंदगी के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं। इस दौरान अक्सर छाई का यह पहाड़ इनपर मौत बनकर टूट पड़ता है। खोदते पहाड़ निकलती चुहिया दरअसल इस छाई के पहाड़ में से ये लोग बोरा भर-भर कर वो जरूरी चीज निकालते हैं जिससे अन्य घरों में चूल्हा जलता है। क्षेत्रीय भाषा में इसे गुंडी कहते हैं। एक तरह से यह गुंडी, कोयले की ही तरह होता है जिसे चूल्हा जलाने में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह प्रति बोरी 2 से 5 रुपये में बिकता है। चूंकि शहर में स्थित कंपनियों से निकलने वाले अयस्कों के अवशेष से बना यह पहाड़ वर्षो पुराना है, इसलिए इसके नीचे दबे अवशेष शेष पृष्ठ 17 पर मजबूरी ऐसी कि मौत के डर को भी हंस कर भुलाना पड़ता है
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