नई दिल्ली, महंगाई की आंच से बुरी तरह झुलस रही केंद्र सरकार अब बढ़ती कीम
तों को रोकने की कवायद शुरू कर रही है। इसके लिए सरकार ने एक पैकेज तैयार किया है जिसके तहत चीनी, गेहूं और दालों की कीमतों को नीचे लाने की कोशिश की जाएगी। खाद्य मंत्रालय के इस पैकेज पर अमल के बाद न सिर्फ बंदरगाहों पर अटकी पड़ी आयातित चीनी को खुले बाजार में बेचा जाएगा बल्कि आयातित दालों की मौजूदा टेंडर प्रक्रिया को भी बदलकर उसे खुले बाजार में डालने की कोशिश की जा रही है। सरकार आसान शर्तो पर खुले बाजार में भारी मात्रा में गेहूं की आपूर्ति बढ़ाना चाहती है ताकि इसकी बढ़ती कीमतों पर भी लगाम लगाई जा सके। खाद्य मंत्रालय के इस पैकेज पर बुधवार को होने वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल की मूल्य समिति पर विचार होगा। यह बैठक पहले मंगलवार को होनी थी, लेकिन इसे बुधवार तक के लिए टाल दिया गया है। दरअसल सरकार के कदमों में तेजी महंगाई के मुद्दे पर अचानक सियासत गरमाने की वजह से आई है। कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार सत्तारूढ़ कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं। हालांकि एनसीपी के नेता डीपी त्रिपाठी ने कहा कि महंगाई के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल को सामूहिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। खाद्य मंत्रालय ने जो प्रस्ताव तैयार किए हैं, उनमें खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति में आड़े आ रही कानूनी अड़चनें खास हैं। इससे कांडला बंदरगाह पर महीनों से डंप आयातित कच्ची चीनी जल्द से जल्द खुले बाजार में पहुंचाने का रास्ता साफ हो जाएगा। कच्ची चीनी के इस स्टॉक को दूसरे राज्यों में ले जाने के लिए कस्टम नियमों में संशोधन करना जरूरी हो गया है। दालों की मांग व आपूर्ति में खास अंतर न होने के बावजूद कीमतों के बहुत बढ़ जाने पर सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं। दरअसल दाल की आयातक सरकारी एजेंसियों के नियमों से जमाखोरी को बढ़ावा मिलता है। उदाहरण के लिए एसटीसी, पीईसी, नैफेड और एमएमटीसी जैसी कंपनियां आयातित दालों को बेचने के लिए हमेशा बड़े सौदों के टेंडर करती हैं। ऐसे में दाल का सौदा बड़ी व्यापारिक कंपनियां करती हैं, जो जिंस बाजार को अपनी अंगुलियों पर नचाती हैं।

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