चमोली, उत्तराखंड के तिब्बत की सीमा से सटे भारतीय गांवों में पलायन तेजी से बढ़ रहा है। आलम यह है कि कई सीमांत गांवों में वर्तमान में जनसंख्या वर्ष 1991 के मुकाबले महज आधी रह गई है। इन गांवों का अपेक्षित विकास न होना पलायन का मुख्य कारण माना जा रहा है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर द्वितीय रक्षा पंक्ति माने जाने वाले ग्रामीणों की संख्या में तेजी से आ रही कमी को लेकर जिला प्रशासन चिंतित है। भारत-तिब्बत सीमा पर चमोली जनपद के माणा, नीती, गमशाली, बाम्पा, मलारी, कैलाशपुर, जेलम, जुम्मा समेत 10 गांव बसे हुए हैं। इन गांवों के लोग शीतकाल में छह महीने के लिए जिला मुख्यालय के आसपास बसे गांवों में आ जाते हैं और गर्मी के मौसम में वे फिर वहीं लौट जाते हैं, लेकिन अब वापस होने वाले लोगों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि अधिकांश गांवों की जनसंख्या 1991 की तुलना में आधी कम हो चुकी है। अधिकांश गांवों में तो मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। ऐसे में ग्रामीण गांव छोड़कर रोजगार और सुविधा की तलाश में बड़े पैमाने पर बाहर जाने लगे हैं। इन गांवों से लगे तिब्बती गांवों की बात करें, तो वहां चीन (1959 में कब्जे के बाद) पर्यटन विकास की दिशा में उल्लेखनीय कदम बढ़ा रहा है। वहां के गांवों में संचार सुविधाएं मुहैया कराने के बाद न सिर्फ सड़कों का चौड़ीकरण किया गया, बल्कि ल्हासा से किघाई प्रांत तक रेलवे लाइन तक बिछा दी गई, जिससे इन गांवों के लोगों को जनजीवन में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिला। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे गांवों की भूमिका सुरक्षा की दृष्टि से अहम मानी जाती है। भौगोलिक परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ होने की वजह से यहां के लोगों को द्वितीय रक्षा पंक्ति के रूप में देखा जाता है। इसके बावजूद भारत के गांवों का विकास न होना भविष्य के लिए खतरा बढ़ाता है। जोशीमठ में तैनात सेना के अफसर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि सीमांत गांवों से ग्रामीणों का पलायन सुरक्षा के लिहाज से अच्छा नहीं है। हालांकि उनका कहना है कि यह देखना होगा कि ये गांव बार्डर पर फ्रंट, इंटरमीडिएट अथवा डैप्थ जोन में से किसमे बसे हैं।
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