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सोमवार, 19 अक्टूबर 2009

ग्रामीणों ने बर्बादी में ढूंढ़ा खुशहाली का रास्ता


उन्होंने अपनी बर्बादी के बाद खुद को संभाला..कारण को समझा..फिर बर्बादी के उस कारण में अपनी खुशहाली का रास्ता ढूंढ़ निकाला। उन्होंने इस बार वह गल्ती नहीं दोहराई जो हर बार उनकी खुशियों को राख के ढेर में बदलने का काम करती थी। उन्होंने एक ऐसी रीत चलाई जो न केवल उनके वर्तमान को बचा गई बल्कि उनके भविष्य को भी संवारने की नींव रख गई। साथ ही हम सबके लिए भी सबक बन गई। जिला कांगड़ा के छोटा भंगाल में हर साल खासकर दीवाली पर एक किसी न किसी परिवार को खुशियां आग की भेंट चढ़ जाती थी। यहां के लोगों ने इस बर्बादी से सबक लिया और मूल कारण को समझा। आग लगने का मुख्य कारण थे पटाखे। लकड़ी से बने यहां के घरों के लिए एक चिंगारी भी बारूद का काम कर जाती है। इस कारण पर मंथन करते हुए छोटा भंगाल के लोगों ने इसे पर्यावरण के लिए भी खतरनाक पाया। इस दीवाली उन्होंने सबक लेते हुए पटाखे चलाने से तौबा कर ली। हर साल किसी न किसी परिवार की खुशियों पर वज्रपात करने वाली दीवाली छोटा भंगाल में इस बार वैदिक रीति-रिवाज से ही मनाई गई। दीवाली की रात घरों की दहलीज पर जहां घी के दीपक जले वहीं फूलमालाओं से घरों को साज-सज्जा की गई। पर्यावरण संरक्षण की कसम उठाते हुए गांववासियों ने इस बार दीवाली पर अपने घरों में पटाखे नहीं फोड़े। लोगों ने पटाखे फोड़ने के बजाए मीठे पकवान बनाए और कुल देवता सहित मां लक्ष्मी की पूजा कर दीवाली मनाई। छोटा भंगाल के लोगों ने इस दीवाली पर्यावरण संरक्षण की कसम खाई। वह इसमें पूरे प्रदेश की खुशहाली देखते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि इस पहल को हम सब मिलकर आगे बढ़ाएं। पर्यावरण के प्रति अपनी समझ का परिचय देते हुए यहां के लोगों ने दुनिया को संदेश भी दिया है कि अगर हम अब भी नहीं चेते तो सब खत्म हो जाएगा। इस पहल के पीछे स्वच्छता अभियान के समन्वयक व समाज सेवक रामशरण चौहान का बड़ा हाथ बताया जा रहा है। बरोट क्षेत्र के रामशरण ने पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा बहुत पहले से उठा रखा है, जिसके परिणाम अब सामने आने लगे हैं।

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