
अब नेत्रहीन भी श्री गुरुग्रंथ साहिब पढ़कर मन में आध्यात्मिकता का दीप जला पाएंगे। दृष्टिहीनों में अध्यात्म की लौ जलाने का यह सराहनीय प्रयास खुद एक नेत्रहीन कर रहे हैं। स्माल पाक्स के कारण महज आठ वर्ष में आंखें गंवाने वाले इस शख्स ने इन धार्मिक पुस्तकों की प्रूफ रीडिंग भी खुद की है। अब वह ब्रेल लिपि में श्री गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाशन की तैयारी कर रहे हैं। 69 वर्षीय भाई गुरमेज सिंह ने अब तक श्री सुखमणि साहिब, श्री गुरू तेगबहादुर की बाणी, श्री गुरू अमरदास की बाणी, नित नेम, आसा दी वार एवं भगतों की बाणी को ब्रेल लिपि में प्रकाशित करवाकर दृष्टिहीनों को नायाब तोहफा दिया है। अब ब्रेल लिपि में श्री गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाशन की तैयारी में जुट गए हैं। इसमें खासा वक्त लगेगा इसलिए उन्होंने ब्रेल प्रेस स्थापित करने की योजना बनाई है। अमेरिका व स्विट्जरलैंड में ही ब्रेल प्रिंटिग मशीन मिलती है। इस पर कुल एक करोड़ खर्च होगा। उन्होंने बताया कि उनका जन्म वजीतपुर (नवांशहर) में 1940 में हुआ। 8 साल की उम्र में स्माल पाक्स के कारण वह अपनी आंखें गंवा बैठे। उस वक्त लखाड़ा (जालंधर) के भाई दिल सिंह जी मशहूर गवैया थे। वह भी नेत्रहीन थे। मेरे पिताजी परसा सिंह मुझे लेकर उनसे मिले और मुझे उनसे ही प्रेरणा मिली। फिर पिताजी ने मुझे अमृतसर यतीम खाना भेज दिया। 18 वर्ष तक यहां शिक्षा के अलावा संगीत की तालीम मिली। फिर कीर्तन के लिए वेरका स्थित नानकसर गुरुद्वारा में ड्यूटी लगाई गई। चीफ खालसा दीवान के डा. संत सिंह की आज्ञा पर देहरादून स्थित गुरुद्वारे में कीर्तन के लिए चला गया। 1965 में अयोध्या की बलबीर कौर से शादी हुई। 1969 में गुरु नानक देव जी का 500 साला पर्व मनाया जा रहा था। उस दौरान पहली बार गुरबाणी छपवाने के लिए हमने प्रयास किया। उस वक्त एकमात्र सरकारी ब्रेल प्रेस था। इसके लिए हमें केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी पड़ी। पहली बार ब्रेल लिपि में गुरबाणी प्रकाशित हुई। 1971 में श्री दरबार साहिब में सेवा का मौका मिला। कई बार रागी जत्थे लेकर विदेश भी गए। बिन भागां सत्संग ना लभै समेत 12 धार्मिक शब्दों में अपना सुर दिया। भाई वीर सिंह की 50वीं बरसी पर उनकी कविताओं के संकलन पर भी आडियो-वीडियो सीडी जारी हुई। एसजीपीसी द्वारा शिरोमणि रागी अवार्ड व उजागर सिंह सेखवां अवार्ड के अलावा पंजाब भाषा विभाग भी उन्हें सम्मानित कर चुका है।
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