
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा से भड़के चीन ने धमकी भरे अंदाज में सोमवार को कहा, लगता है भारत 1962 की जंग का सबक भूल गया। इस तल्ख बयान के साथ चीनी शासन का कोई नुमाइंदा सीधे तौर पर सामने नहीं आया, लेकिन भारत को पुरानी जंग के सबक की याद ताजा कराने में कम्युनिस्ट सरकार के मुखपत्र पीपुल्स डेली को जरिया जरूर बनाया गया। इसी पत्रिका के आलेख में यह भी कहा गया है कि भारत अपने एजेंडे के लिए दलाई लामा का इस्तेमाल कर रहा है। अगर ऐसा है तो वह फिर गलत रास्ते पर चल रहा है। वहीं चीन को दलाई के दो टूक जवाब से भीतरी तौर पर संतुष्ट भारत ने इस पर तल्ख तेवर दिखाने से खुद को दूर ही रखा। विदेश राज्यमंत्री शशी थरूर ने कहा कि दलाई लामा तवांग की यात्रा अपनी मर्जी से कर रहे हैं। भारत ने उन्हें ऐसा करने के लिए नहीं कहा। एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों से बातचीत में थरूर ने कहा हम किसी आध्यात्मिक नेता के प्रवास से संबंध नहीं रखते। इस यात्रा का सुझाव हमारा नहीं था। अपने लोगों से मिलने का उनका (दलाई) अपना फैसला रहा होगा और उन्होंने जब ऐसा करना उचित समझा किया। रविवार को तवांग पहुंचे दलाई के चीन की आपत्ति को बेवजह बताने के बाद कम्युनिस्ट शासक भड़के हुए हैं। चीनी सरकार के मुखपत्र में इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया इसी का नतीजा भी है। इसे दोनों मुल्कों के शीर्ष नेतृत्व की थाईलैंड में हुई वार्ता के असर का नतीजा ही कहा जा सकता है कि दलाई की अरुणाचल यात्रा शुरू होने पर चीन के किसी नेता ने अभी तक चुप्पी नहीं तोड़ी है, लेकिन दलाई की टिप्पणी के बाद बीजिंग से प्रतिक्रिया का यह तरीका निकाला गया है। यही वजह है कि भारतीय खेमे से भी किसी नेता ने चीन पर बरसने की कमान नहीं संभाली। पत्रकारों के पूछे जाने पर विदेश राज्यमंत्री आगे आए। उन्होंने एक तरह से चीन को संदेश देने की कोशिश की कि दलाई अपने फैसले करने के लिए स्वतंत्र हैं और उनकी यात्रा को लेकर चीन का भारत पर नाराजगी जताना बेवजह है। वैसे पीपुल्स डेली ने भारत के लिए एक तरह से काफी कड़वी बातें कहीं हैं। एक विश्लेषक की तरफ से आए इस लेख में साफ लिखा है कि दलाई ने दक्षिणी तिब्बत की यात्रा पूरी तरह भारत के दबाव में की है। दलाई ने उस देश के कहने पर ऐसा काम किया है जिसके एहसान तले वह बरसों से दबे रहे।
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