
एक कलछी नीला पाउडर, दो कलछी नारंगी पाउडर, थोड़ा सा गुड़, चीनी, सोडा, साबूदाना और एक गिलास लिक्विड मिला कर बनाये जा सकते हैं घातक बम। इनके अनुपातों में बस थोड़ा सा फेर-बदल और कर दें तो बन जाते हैं लैंड माइन्स, टिफिन बम व प्रेशर कुकर बम जैसे बड़े इलाके को उड़ाने वाले बम। विज्ञान जानने वाले भले ही इन विधियों से भ्रमित हो जाएं लेकिन नक्सली इसी के सहारे गांवों के अनपढ़ व कम पढ़े-लिखे लोगों को घातक बम बनाना सिखा कर विस्फोट करा रहे हैं। इसके लिए उन्हें न तो किसी प्रशिक्षण की जरूरत होती है और न ही रसायन के ज्ञान की। बम बनाने की इन विधियों का खुलासा पिछले दो दिनों में कंकड़बाग में पकड़े गए लगभग एक टन विस्फोटकों के साथ मिले नक्सली साहित्य से हुआ। इस खुलासे से पुलिस के भी हाथ-पांव फूल गए हैं। केमिकल के इस्तेमाल से घातक बम बनाना एक स्पेशलिस्ट का ही काम समझा जाता है लेकिन परफूलप्रूफ योजना से काम करने वाले नक्सली, साहित्य व सीडी से इन जटिल विधियों को बेहद आसान तरीके से समझा रहे हैं। चूंकि विस्फोटक बनाने में काम आने वाले केमिकल, रासायनिक गुणों के आधार पर अलग-अलग रंगों के होते हैं लेकिन बम बनाने में इनके अनुपात का खासा महत्व होता है। अगर रसायनों की पहचान नहीं है तो आम आदमी को रंगों से उसकी विशिष्टता समझाई जा सकती है। नक्सली इसी आधार पर काम कर रहे हैं। विस्फोटकों के साथ ऐसे आसान फार्मूले मिले हैं जिसमें केमिकल के अलावा आवश्यक उपकरणों में घरेलू बर्तनों जैसे कलछी, गिलास आदि से ही काम चल जाता है। जो थोड़े पढ़े-लिखे हैं उनके लिये बम बनाने की आसान विधि वाली किताबें और अनपढ़ों के लिये वीडियो सीडी। जिसे देखकर वे आसानी से विस्फोटक बना सकते हैं। सीडी में इसे बकायदे प्रशिक्षण के अंदाज में दिखाया गया है। पुलिस इसे बड़ी गंभीरता से ले रही है क्योंकि अगर नक्सली अपनी इस मुहिम में सफल रहे तो गांव-गांव में उनका ऐसा कैडर तैयार हो सकता है जो कहीं भी, कभी भी विध्वंसक घटनाओं को अंजाम दे सकता है। जिस पर लगाम कसना पुलिस के लिये भी चुनौती साबित होगी।
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