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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

कुर्बान = न्यूयॉर्क + फना


फिल्म समीक्षा



बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : हीरू जौहर, करण जौहर
निर्देशक : रेंसिल डीसिल्वा
संगीत : सलीम-सुलैमान
कलाकार : सैफ अली खान, करीना कपूर, विवेक ओबेरॉय, ओम पुरी, दीया मिर्जा, किरण खेर
केवल वयस्कों के लिए * 17 रील * 2 घंटे 37 मिनट
रेटिंग : 2/5

आदित्य चोपड़ा और करण जौहर की दोस्ती जगजाहिर है। दोनों अक्सर मुलाकात करते रहते हैं और संभव है कि किसी दिन उन्होंने एक कहानी को लेकर गपशप की हो। इसके बाद दोनों उस कहानी पर फिल्म बनाने में जुट गए। लगभग एक सी कहानी पर थोड़े से फेरबदल के साथ ‘न्यूयॉर्क’ और ‘कुर्बान’ सामने आईं। करण ने ‘कुर्बान’ में ‘फना’ को भी जोड़ दिया है।

9/11 की घटना के बाद कई फिल्मों का निर्माण किया गया है और हर फिल्मकार ने आतंकवाद के बारे में अपना न‍जरिया पेश किया है। अमेरिका में जो हुआ, निंदनीय है और बदले में अमेरिका ने जो कार्रवाई की वह भी निंदनीय है क्योंकि मरने वालों में अधिकांश बेकसूर थे।

‘कुर्बान’ के जरिये भी आतंकवाद को अपने तरीके से विश्लेषित किया गया है। कुछ लोग अपने फायदे के लिए इस्लाम की गलत व्याख्या कर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, जो कि गलत है। वही दूसरी ओर आतंकवादियों को ढूँढने के नाम पर अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में बेकसूर लोगों को मारा है वह भी आतंकवाद ही है। फिल्म की सोच भले ही सही हो, लेकिन अपनी बात कहने के लिए जो ड्रामा रचा गया है वह खामियों के साथ-साथ उबाऊ भी है।


एहसान (सैफ अली खान) और अवंतिका (करीना कपूर) दिल्ली के एक ही कॉलेज में पढ़ाते कम और रोमांस ज्यादा करते हैं। अवंतिका अमेरिका से कुछ दिनों के लिए दिल्ली आई है और अब वापस अमेरिका जाने वाली हैं। एहसान भी अपना करियर छोड़ उसके साथ अमेरिका चला जाता है और दोनों शादी कर लेते हैं।

अवंतिका के पैरो तले जमीन उस समय खिसक जाती है जब उसे पता चलता है कि एहसान एक आतंकवादी संगठन से जुड़ा हुआ है और उसके इरादे खतरनाक हैं। साथ ही उसने अमेरिका में प्रवेश के लिए अवंतिका का उपयोग किया है। अवंतिका को हिदायत दी जाती है कि वह चुप रहे वरना उसके पिता को मार दिया जाएगा।

रियाज़ (विवेक ओबेरॉय) आधुनिक सोच वाला युवा मुसलमान है,जो पेशे से पत्रकार है। रियाज़ इस बात से भी वाकिफ है कि अमेरिकियों ने इराक में ‍क्या किया है। उसकी गर्लफ्रेंड (दीया मिर्जा) उस विमान दुर्घटना में मारी गई, जिसकी साजिश एहसान और उसके साथियों ने रची थी।

अवंतिका को यह बात मालूम पड़ गई थी और उसने दीया के लिए टेलीफोन पर संदेश भी छोड़ा था, जो रियाज़ ने बाद में सुना। रियाज़ अपने तरीके से मामले को निपटाने के लिए एहसान की गैंग में शामिल हो जाता है। किस तरह एहसान को एहसास होता है कि वह गलत राह पर है, यह फिल्म का सार है।

निर्देशक रेंसिल डीसिल्वा ने कहानी को वास्तविकता के नजदीक रखने की कोशिश की है, लेकिन कहानी में कुछ ऐसी खामियाँ हैं, जो हजम नहीं होती। मिसाल के तौर पर विवेक ओबेरॉय बजाय पुलिस को बताने के मामले को अपने हाथ में लेता है, जबकि सारे अपराधी उसके सामने बेनकाब हो चुके थे।

अमेरिकी पुलिस को तो भारतीय पुलिस से भी कमजोर बताया गया है। एक आतंकवादी के रूप में सैफ के फोटो पुलिस के पास मौजूद रहते हैं, लेकिन सैफ एअरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और यूनिवर्सिटी में बेखौफ घूमता रहता है। कई दृश्यों में फिल्म के नाम पर कुछ ज्यादा ही छूट ‍ले ली गई है।


सैफ का किरदार बीच फिल्म में अपनी धार खो देता है। न तो वह आतंकवादी लगता है और न ही ऐसा इंसान जिसकी सोच प्यार की वजह से बदल रही है। उनके किरदार को ठीक से पेश नहीं किया गया है।

फिल्म के प्रचार में इसे एक प्रेम कहानी बताया गया है, लेकिन सैफ और करीना के प्रेम में गर्माहट नजर नहीं आती। रोमांस और सैफ का असली चेहरा सामने आने वाली बात फिल्म के आरंभ में ही दिखा दी गई है, लेकिन उसके बाद कहानी बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है।

फिल्म के मुख्य कलाकारों सैफ, करीना और विवेक का अभिनय ठीक ही कहा जा सकता है। वे और बेहतर कर सकते थे। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद सशक्त है, चाहे फोटोग्राफी हो, एक्शन सीन हो, बैकग्राउंड म्यूजिक हो। एक-दो गाने भी सुनने लायक हैं। संपादन में कसावट की कमी महसूस होती है।

कुल मिलाकर ‘कुर्बान’ न तो कुछ ठोस बात सामने रख पाती है और न ही मनोरंजन कर पाती है।

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