
सरकार सारे संसाधन झोक दे और निजी क्षेत्र को भी शामिल कर ले फिर भी भागीरथी को दस साल से पहले मुक्ति नहीं मिलनी वाली। क्योंकि पिछले गंगा एक्शन प्लान की नाकामी के बाद अब लक्ष्य को बढ़ाकर 2020 कर दिया गया है। यह लक्ष्य भी उसी कीमत पर पूरा होगा जब कि पर्याप्त संसाधन जुट सकें। इस नये लक्ष्य को पाने के लिए जल शोधन संयंत्र व अन्य आधारभूत संसाधन जुटाने होंगे जिसमें कुल 1,32000 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। इसी बढ़ते आर्थिक बोझ को बांटने के लिए सरकार ने निजीक्षेत्र को शामिल करने का प्रस्ताव किया है। सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में सरकार ने माना है कि अगर जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्युवल (जेएनएनयूआरएम) की सारी योजनायें पूरी क्षमता से लागू कर दी जायें (जो कि संभव नहीं दिखता)तो भी तो भी सिर्फ कानपुर और पटना में गंगा को मैला कर रहे सीवर साफ हो सकेंगे। ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद, वाराणसी और हावड़ा का सीवर फिर भी गंगा को अपवित्र करता रहेगा। वैसे गंगा को साफ करने का दारोमदार सिर्फ निजी क्षेत्र पर ही नहीं राज्य व स्थानीय निकाय टैक्स, यूजर चार्ज और म्युनिसपल बांड के जरिए धन एकत्र करेंगे जो कि गंगा की सफाई में काम आयेगा। सरकार मानती है कि गंगा अभी भी गंदी है और कई जगह इसका पानी पीने लायक तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। सरकार को इस बात की भी बड़ी चिंता है कि राज्य अपने यहां बने सीवर शोधन संयंत्रों का रखरखाव ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। देश का 26 फीसदी हिस्सा गंगा बेसिन में आता है। गंगा में रोजाना 12000 मिलियन लीटर (एमएलडी)घरेलू सीवर गिरता है। जिसमें सिर्फ 3,750 एमएलडी सीवर ही साफ हो पाता है। बाकी गंगा का मैला कर रहा है। यानि मौजूदा जरूरत को पूरा करने के लिए ही अभी 8,250 एमएलडी क्षमता के शोधन संयंत्रों की जरूरत है। जबकि 2020 का लक्ष्य पाने के लिए इसके अलावा 11,250 एमएलडी की और जरूरत होगी। घरेलू सीवर के अलावा उद्योग भी गंगा को मैला करते हैं। गंगा में बहाई जा रही गंदगी में इनका हिस्सा 20 फीसदी है।
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