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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

पीजिए जनाब! डेग-डेग पर हाजिर है शराब


मुजफ्फरपुर - इसे राज्य सरकार की उत्पाद नीति का कमाल कहें या उपलब्धि! उत्तर बिहार के गांवों-कस्बों में जरूरत पड़ने पर भले ही दवा न मिले, देशी-विदेशी शराब ऑलटाइम उपलब्ध है। नशाखोरी की वजह से जिलों की विधि व्यवस्था लड़खड़ाए तो लड़खड़ाए, साल-दर-साल लक्ष्य से ज्यादा राजस्व वसूली से उत्पाद विभाग तो मस्ती में झूम रहा है। बगहा में आलम यह है कि होटलों व पान दुकानों पर खुलेआम शराब की बिक्री होती है। इस गोरखधंधे में विभागीय अफसरों और पुलिस की मिलीभगत भी है। बेतिया में देशी शराब का अवैध धंधा परवान पर है। उत्पाद निरीक्षक दिनबंधु की मानें तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष दुकानों की संख्या बढ़ी है। इस वर्ष देशी शराब की 8 दुकानें हैं, जबकि पिछले वर्ष 6 थीं। जिले में दुकानों की संख्या बढ़ने से लोगों की परेशानियां भी बढ़ी हैं। मोतिहारी में भी धड़ल्ले से शराब बेची जा रही है। चौक-चौराहों पर शाम होते ही जाम टकराने वालों की भीड़ उमड़ने लगती है। देशी व विदेशी शराब पिलाने के लिए उत्पाद विभाग ने 174 दुकानों की व्यवस्था कर रखी है। इस वर्ष अक्टूबर तक देशी शराब 11 लाख लीटर, विदेशी शराब चार लाख 25 हजार लीटर व बीयर दस लाख 30 हजार लीटर बिक चुकी है। सीतामढ़ी भी किसी से पीछे नहीं है। हर मोड़ पर शराब की दुकानें मिल जाएंगी। यहां शराबखोरों की जमात में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। हाल के दिनों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें युवा शामिल थे। पुलिस भी स्वीकारती है कि शराबखोरी से अपराध बढ़ रहा है। जिले में कभी पंद्रह से बीस किमी की दूरी पर शराब की दुकानें होती थीं। मधुबनी भी पूरी तरह परेशान है। क्या गांव, क्या शहर, चहुंओर चौक-चौराहोंपर शराबियों का बोलबाला है। कोई भी दिन ऐसा नहीं होगा, जब शराबी राह चलते लोगों को तंग नहीं करते हों। युवा तो मानों शराब में डुबकी लगा रहे हैं। जिले में 220 देशी शराब की दुकानें पंचायत स्तर पर स्वीकृत हैं। इनमें 181 बंदोबस्त हैं, जबकि मिश्रित शराब की दुकानें नगर परिषद में 47 तथा पंचायतों में 133 हैं। शराब के कारण यहां क्राइम भी बढ़ रहा है। वहीं पंडौल, सकरी, रहिका के थानाध्यक्षों के मुताबिक शराब पीकर हो हल्ला के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते हैं। समस्तीपुर में सरकारी शराब की दुकानों ने सामाजिक तानाबाना बिगाड़ कर रख दिया है। हर गांव, हर युवा चपेट में है। मारपीट व दंगा फसाद की वारदातें बढ़ गई हैं। यह दीगर बात है कि ये मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते। शराबी नशा उतरते ही क्षमा मांग कर मामले निबटा लेते हैं। जिले की लगभग सभी पंचायतों में देसी शराब की दुकानें हैं। गत वित्तीय वर्ष में 2753. 75 करोड़ राजस्व की प्राप्ति हुई थी। इस वर्ष लक्ष्य का लगभग लगभग 60 फीसदी राजस्व प्राप्त हो चुका है। मछली और मखाना के लिए मशहूर दरभंगा भी शराबियों की जद में है। पान दुकानों पर खुलेआम शराब उपलब्ध है। शायद ही कोई चौराहा हो जहां शराब नहीं बिकती। मुनाफा कमाने की नीयत से कम्पोजिट शराब दुकान के मालिक ही अपने पोषक क्षेत्र की पान दुकानों व किराना दुकानों में शराब की सप्लाई करते हैं। हैरत की बात तो यह है कि इस गोरखधंधे से उत्पाद विभाग भी पूरी तरह वाकिफ है, पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

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