
मिर्जा गालिब ने अपने एक शेर में इश्क को आग का दरिया बताते हुए इसमें डूब कर गुजरने की बात कही थी। वक्त गुजरा। इश्क के मायने बदल गए और गालिब साहब के शेर के भी। मौजूदा दौर कारपोरेट दौर है। अब आपको इश्क के लिए नहीं वरन नौकरी के लिए आग के दरिया से गुजरना होगा। जी हां। कारपोरेट दुनिया में नौकरी की चाहत है तो आपके लिए सलीके से कपड़े पहनना, नफासत से पेश आना और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना ही काफी नहीं, वरन उससे आगे भी कई इम्तिहानों से गुजरना होगा। इम्तिहान भी कोई आसान नहीं, जलते अंगारे पर कूदना, पहाड़ को काट कर अपने लिए रास्ता बनाना वगैरह-वगैरह..। अमृतसर के कारपोरेट कंपनियों में कार्यरत मुलाजिम आज कुछ ऐसे ही कठिन इम्तिहानों से गुजरे और गुरु द्रोणाचार्य की भूमिका में रहे दिल्ली से आए स्पेशल ट्रेनर पीएस राठौर। देर शाम बेस्ट मैरियन होटल में कान्फेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) द्वारा आयोजित कारपोरेट अधिकारियों व कर्मचारियों के ट्रेनिंग शिविर में राठौर ने काम करने के तरीके बताए। राठौर के नेतृत्व में 35 कारपोरेट प्रशिक्षुओं ने जलते व दहकते अंगारे से गुजर कर अपने डर को बाहर निकाला। इसके बाद गुब्बारे फुलाना, लोहे की रॉड को गले से जमीन के साथ लगा कर मोड़ने के हैरतअंगेज कारनामे करवाए उन्होंने कहा कि यह कोई जादू अथवा भ्रम नहीं है बल्कि व्यक्ति के भीतर ही इतना सामर्थ्य है कि वह हर काम को आसानी से कर सकता है।
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