
सरकार के अथक प्रयास के बाद कोसी की धारा जिस होकर बहती थी बहने लगी, मगर इसकी बदली धारा ने जो तबाही मचायी उस त्रासदी से उपजे अवसाद का कहर आज भी यहां के तीन हजार से ज्यादा लोग झेल रहे हैं। बाढ़ की विभषिका ने कोसी के 3397 लोगों को मानसिक रूप से विकलांग बना दिया है। अपना सब कुछ कोसी की धारा में बह जाने का सदमा ये नहीं झेल पाये और अपना होश खो बैठे। पिछले साल आयी कोसी की बाढ़ में मुरलीगंज में 812, त्रिवेणीगंज में 691, छातापुर में 1892 व पूर्णिया में 3 लोगों का सब कुछ लूट गया। कइयों को अब भी पानी से डर लगता है, तो कई मानसिक रूप से विकलांग होकर कोसी का नाम रटते-रटते दिन और रात काट देते हैं। इनमें सैकड़ों पीडि़तों का इलाज विकलांग भौतिक पुर्नवास केन्द्र में अब भी किया जा रहा है। इस केन्द्र का संचालन हैंडीकैप इंटरनेशनल एवं दीपालय विकलांग मानसिक स्वास्थ्य संस्थान द्वारा होता है। मुरलीगंज के जोरगामा के रहने वाले अनमोल पोद्दार का सब कुछ कोसी की तेज धारा में बह गया। तबाही इतनी तेजी से आयी की इनके परिवार का एक बच्चा भी पानी की तेज धारा के साथ बह गया। इसका उन्हें जबरदस्त सदमा लगा और वे मानसिक रूप से विकलांग हो गये। कोसी की बदली धारा ने सकली खातून, छकाड़गढ़, छातापुर की जिंदगी भी वीरान कर दी। अपने परिवार का सब कुछ खोने का गम वह नहीं झेल पायी। सुपौल के ही जदिया निवासी कविता कुमारी तथा पूर्णिया के नौलखी के शिवनारायण यादव एवं बौराही के बालकराम ऋषिदेव भी कोसी में अपना सब कुछ खोने के बाद मानसिक रूप से विकलांग हो गये हैं। छातापुर के रविन्द्र साह को तो कोसी की बाढ़ के बाद पानी से इस कदर खौफ पैदा हो गया है की वह पानी देखते ही भागने लगता है। रविन्द्र की पत्नी कोसी की तेज धारा में बह गयी। मधेपुरा के कुमारखंड के वीरन्द्र प्रसाद की बाढ़ के बाद मानसिक विकलांगता इस कदर बढ़ गयी है कि यह आदमी जितनी देर भी जगा रहता है कोसी-कोसी की रट लगाये रखता है। इस व्यक्ति के दो बेटे कोसी के बाढ़ के बाद कहां गये आज तक इसका पता नहीं चला। प्रदीप साह का भी कुछ यही हाल है वह चुपचाप रोते रहता है। किसी तरह सरकारी जमीन पर उसके द्वारा फूस का मकान बनाया गया था। जिसमें कोसी के तबाही के दिन उसका पूरा परिवार सोया हुआ था। जब तक यह परिवार संभलता कोसी की उफनती धारा उन्हें अपने साथ बहा ले गयी। उनकी पत्नी सुदमिया देवी कहती है कि पति की मानसिक स्थिति इस सदमे के बाद इतनी खराब हो गयी है की वे कुछ बोल ही नहीं पाते हैं।
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