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शनिवार, 14 नवंबर 2009

शहर जाई लइका, होशियार हो जाई!


शहर जाई लइका तो होशियार हो जाई। बाल तस्कर कुछ इसी प्रकार का झांसा देकर ग्रामीणों के देते हैं और उनके बच्चे को शहर जाकर बेच देते हैं। अपने बच्चों का भविष्य संवरने का सपना लिए आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोग इनके झांसे में आ जाते हैं और उनका भविष्य तो दूर वर्तमान भी बर्बाद हो जाता है। इस तरह का खुलासा रक्सौल इलाके में बच्चों की बरामदगी के बाद हुआ। बता दें कि इन दिनों पूरा उत्तर बिहार चाइल्ड ट्रैफिकिंग की जद में है। इसका मूल कारण यहां का भौगोलिक बनावट और प्राकृतिक आपदाएं हैं। गरीबी का लाभ उठाकर दलाल यहां के बच्चों को ही नहीं बल्कि औरतों, और लड़कियों को भी खरीदकर अन्य राज्यों में बेच देते हैं। बच्चे तो कई बार मुक्त करा लिए जाते हैं, लेकिन हैरत की बात है कि दलाल हत्थे नहीं चढ़ पाते। सूत्रों के अनुसार दलाल बड़ी चालाकी से भोले-भाले ग्रामीणों में पहले पैठ बनाते हैं फिर उन्हें छलते हैं। ये लोग दबे-कुचले गरीब परिवार के 10 से 15 वर्ष के बच्चों को काम सिखाने और शहर में पढ़ाने का प्रलोभन देते हैं। अभिभावकों को तत्काल 10-15 हजार रुपये एडवांस देते हैं। उनका तर्क होता है, कंपनी ने काम सिखाने की एवज में परिजन को आर्थिक सहयोग दिया है। इसके बाद बच्चों के कथित रिश्तेदार बनकर दूसरे राज्यों में लेकर जाते हैं। इन बच्चों से रात-दिन काम लेते हैं। घर वालों से बातचीत नहीं करने देते हैं। वहीं लड़कियों को घर में बच्चों की देखरेख करने, नृत्य-संगीत सिखाने व हीरोइन बनाने का सब्जबाग दिखाते हैं। अभिभावकों को हर साल लाखों की इसके बाद शुरू होती है इनकी जिंदगी से खिलवाड़। यह ट्रैफिकिंग मुख्य रूप से मानव अंगों की खरीद-बिक्री, बंधुआ मजदूरी, भीख मांगने, सेक्स वर्कर बनाए जाने, बार में शराब परोसने जैसे गलत धंधों के लिए होता है। मुजफ्फरपुर से गुजरने वाली ट्रेनों से बच्चे अमृतसर, फिरोजाबाद, दिल्ली और मुंबई भेजे जाते हैं। दलाल रिश्तेदार बनकर बच्चों को ठिकाने तक पहुंचाते हैं। ये छोटे-छोटे ग्रुपों में बंटे होते हैं, ताकि किसी को शक नहीं हो। मई 2007 में बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता सफदर तौकीर ने कटिहार से आने वाली पैसेंजर ट्रेन में सकरा से मुजफ्फरपुर के बीच अभियान चलाया तो आठ बच्चे मुक्त कराए गए। इनके साथ दलाल इमाम हुसैन भी दबोचा गया था। उप श्रमायुक्त पृथ्वीराज की मानें तो बच्चों को मुक्त कराने के लिए तिरहुत में दल गठित किए गए हैं। तिरहुत में जुलाई 2009 से सितम्बर तक दुकानों को निशाना बनाकर छापेमारी की गई। इस दौरान 36 बाल मजदूर मुक्त कराए गए। 39 मुकदमे दायर किए गए हैं। इनमें मुजफ्फरपुर में 17, सीतामढ़ी में तीन, शिवहर में दो, हाजीपुर में 17 मुकदमे दायर हुए हैं। टै्रफिकिंग के लिए बेतिया भी बदनाम रहा है। यहां कई दलाल पकड़े जा चुके हैं। वैसे श्रम विभाग का धावा दल गत तीन माह में छापेमारी कर आधा दर्जन मामलों का पर्दाफाश कर चुका है। वहीं इंडो-नेपाल बार्डर स्थित रक्सौल में तीन माह के दौरान 42 बच्चे तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए। करीब एक दर्जन तस्कर भी दबोचे गए। सीतामढ़ी में तीन वर्ष पूर्व बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने करीब 200 बच्चों को मुक्त कराया था। वर्तमान में चाइल्ड लाइन नामक संगठन बच्चों को बालश्रम से बचाने के अभियान में जुटा है। समस्तीपुर में वर्ष 08 में मजदूरी कराने के नाम पर ले जाए जा रहे 250 बच्चे मुक्त कराए गए थे। उधर, मधुबनी के इंडो-नेपाल सीमांचल में यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। दरभंगा में भी आए दिन बच्चे मुक्त कराए जाते रहे हैं। चूंकि यहां रेल मार्ग की सुविधा है, सो अन्य जिलों से बच्चे लाकर बाहर भेजे जाते हैं। 14 बच्चों के साथ दो दलाल शिवहर के तरियानी थाना के चकसुरगाही गांव निवासी अनिल कुमार साह तथा सीतामढ़ी के बेलसंड थाना अंतर्गत बसौल गांव के रतन साह को दरभंगा जंक्शन पर गिरफ्तार किया गया।

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