
वंदेमातरम् पर हुए विवाद से अखाड़ों की राजनीति में खलबली मच गई है। विरोध तो बाबा रामदेव का हो रहा था, लेकिन इसकी तपिश आचार्य बालकृष्ण तक पहुंच गई है। बालकृष्ण के बचाव में महोत्सव में तीन अखाड़े उठ खड़े हुए। परिषद की बैठक में तीनों को आमंत्रित किया गया, लेकिन कोई भी शामिल नहीं हुआ। अब परिषद ने तीनों अखाड़ों काबहिष्कार कर दिया है। देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अधिवेशन में वंदे मातरम् के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए जाने और अधिवेशन में शामिल हुए बाबा रामदेव से तीर्थनगरी के संत खफा हैं। संतों ने बयान जारी कर बाबा रामदेव की अधिवेशन में मौजूदगी पर नाराजगी भी जताई। इस बीच नाटकीय ढंग से अखाड़ा परिषद की ओर से बाबा रामदेव को क्लीन चिट देने की बात मीडिया में आई। फिर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानदास को लगा कि मीडिया में जिस क्लीन चिट की खबर सामने आई, उसे आचार्य बालकृष्ण अखाड़ा परिषद की ओर से माफी के तौर पर देख रहे हैं। हरिद्वार महोत्सव अगले दो दिन में शुरू होने वाला था। महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर कुर्सी को लेकर संतों में ही विवाद हो गया। इससे अखाड़े भी बंट गए। नया अखाड़ा, निर्मल अखाड़ा और बड़ा उदासीन अखाड़ा के संतों ने आचार्य बालकृष्ण का बचाव किया। इससे ज्ञानदास नाराज हो गए। मंगलवार को अखाड़ा परिषद की अहम बैठक में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को लेकर किसी तरह का प्रस्ताव पारित नहीं करने की शर्त तीनों अखाड़ों ने रख दी, लेकिन यह परिषद को मंजूर नहीं थी। आनन-फानन में बैठक स्थगित हुई। बुधवार को बैठक में तीनों अखाड़े नहीं पहुंचे, लिहाजा उन्हें परिषद से बहिष्कृत कर दिया गया। अणि अखाड़े के हटाए गए चार प्रतिनिधियों ने अखाड़ा परिषद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन परिषद के दबाव में आया तो 1998 के कुंभ जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। अणि अखाड़े के हटाए गए चार प्रतिनिधियों ने भोपतवाला स्थित चेतन ज्योति आश्रम में प्रेसवार्ता कर अखाड़ा परिषद को औचित्यहीन करार दिया। वार्ता के दौरान बाबा हठयोगी ने कहा कि अखाड़ों का गठन इसलिए किया गया था, ताकि शाही स्नान के दौरान होने वाले विवाद थम सकें। इस षडदर्शन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में सभी छह दर्शन और चार संप्रदाय संन्यासी, वैरागी, उदासीन और निर्मल संप्रदाय शामिल हुए। उन्होंने अखाड़ा परिषद द्वारा निर्मल व उदासीन अखाड़े के प्रति की गई कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि जब चार संप्रदाय में दो संप्रदाय निकल गए तो ऐसी स्थिति में अखाड़ा परिषद औचित्यहीन हो गई है।
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