भारत प्रशासित कश्मीर में मजलिसे-मुशावरत ने मंगलवार को कश्मीर बंद का आह्वान किया है. दुकाने बंद हैं और सड़कों पर गाड़ियाँ भी नज़र नहीं आ रही हैं.
बंद का ऐलान दो महिलाओं, निलोफ़र और आसिया जान की मौत की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निष्कर्ष के विरोध में किया गया है. जांच में सीबीआई ने कहा है कि उन दोनों महिलाओं की मौत एक नाले में डूबने की वजह से हुई है.
जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की खंडपीठ के सामने पेश अपनी

लेकिन कश्मीर के कई नागरिकों का मानना है कि सीबीआई की रिपोर्ट मामले पर पर्दा डालने की कोशिश है.
श्रीनगर शहर के एक निवासी मोहम्मद यूसुफ़ का कहना है कि, "आख़िर एक ही समय में दो महिलाएं एक ही नहर में कैसे डूब सकती हैं, वो भी ऐसे में जब नहर का जलस्तर काफ़ी कम हो."
एक अन्य व्यक्ति अफ़रोज़ अहमद ने कहा, "उमर अब्दुल्लाह ने इसे डूबने का मामला कहे जाने पर शुरू में बार-बार माफ़ी क्यों मांगी अगर उन्हें मालूम था कि उन महिलाओं की हत्या नहीं हुई है."
ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि इन महिलाओं के कथित बलात्कार और हत्या में कुछ बड़े लोग शामिल हैं.
विपक्षी पार्टी पीडीपी का कहना है कि जो डर था वही बात हो गई यानी जांच सिर्फ़ दिखावा निकली.
कश्मीर हाईकोर्ट बार ऐसोसिएशन ने जांच को सीबीआई के हवाले किए जाने का यह कहते हुए विरोध किया था कि संस्था तीन साल पहले एक सेक्स स्कैंडल की जांच में अपनी साख खो चुकी है.
ने 13 लोगों के ख़िलाफ़ झूठा मामला बनाने का भी आरोप लगाया. इनमें छह डॉक्टर, पाँच वकील और दो नागरिक शामिल हैं.
रिपोर्ट
सीबीआई ने 14 दिसंबर को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की खंडपीठ के सामने अपनी रिपोर्ट पेश की थी. रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों ने झूठी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट दी और डीएनए जाँच के लिए ग़लत स्लाइड्स भेजे.
ने पुलिस अधीक्षक जावेद इक़बाल सहित चार पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया था. इन अधिकारियों को सबूत मिटाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
सीबीआई का कहना है कि अधिकारियों के ख़िलाफ़ लगे आरोपों को सिद्ध नहीं किया जा सका.
सीबीआई के इस कथन पर दोनों महिलाओं के परिवारवालों और शोपियाँ मामले पर आंदोलन कर रहे संगठन मजलिसे मशावरात ने असंतोष जताया है.
संगठन ने उच्च न्यायालय से कहा है कि सीबीआई ने जानबूझकर घटना के ज़िम्मेदार लोगों को बचाने के लिए मामले को दबाया है.
संगठन की ओर से मोहम्मद शफ़ी ख़ान और अब्दुल रशीद दलाल ने कहा कि सीबीआई ने दोनों महिलाओं के रिश्तेदारों की दी गईं महत्वपूर्ण जानकारियों को रिकॉर्ड ही नहीं किया.
यहाँ पर बता दें कि राज्य सरकार ने इससे पहले इस मामले की एक आयोग से जांच करवाने के आदेश दिए थे. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस केस में पुलिस की किसी एजेंसी के शामिल होने की संभावना को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता.
जाँच आयोग ने एसपी जावेद इकबाल और अन्य तीन पुलिसकर्मियों के बारे में कहा था कि उन्होंने केस के सबूत मिटाए.
शोपियाँ की घटना
नीलोफ़र और आसिया के शव 30 मई को शोपियाँ के रनबियारा नाले में मिले थे.
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस या सुरक्षाबलों ने दोनो महिलाओं के साथ बलात्कार किया और फिर उनकी हत्या कर दी. लोगों की नाराज़गी इस कदर बढ़ी कि लोगों ने ज़बरदस्त प्रदर्शन किए और 47 दिनों तक शोपियाँ बंद रहा.
इस घटना से पूरी कश्मीर घाटी में आक्रोश इतना बढ़ा कि घाटी में आठ दिनों तक बंद रखा गया जिसके दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच जमकर झड़प हुईं और हिंसा में दो प्रदर्शनकारी मारे गए.
मामले पर राज्य विधानसभा में भी गर्मागर्मी हुई और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को इस्तीफ़ा देना पड़ा, हालांकि राज्यपाल ने उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया. अंत में सरकार ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया.
अब सीबीआई इस मामले में उच्च न्यायालय के सामने पावर प्रेज़ेंटेशन देगी. सीबीआई न्यायालय को जानकारी देना चाहती है कि उसने इस मामले पर क्या कार्रवाई की है.
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