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शनिवार, 9 जनवरी 2010

पूरे साल गिरा प्रोपर्टी का पारा

मुम्बई ।।जब गुब्बारा अपनी क्षमता तक फूल चुका हो तो उसके आगे हवा भरने में उसका फूटना तय है। प्रॉपर्टी मार्केट के लिए साल 2009 की शुरुआत कुछ इसी अंदाज मेंहुई। पहले से ही रिसेशन की आंच में तप रहा रीयल इस्टेट का गुब्बारा साल की शुरुआत में ही फूट चुका था। ऊपर से म्हाडा के 3,863 फ्लैटों के लॉटरी का एनाउंसमेंट क्या हुआ, मानो लोग प्राइवेट बिल्डरों को जैसे भूल ही गए और पीछे हो लिए म्हाडा के घरों के। एक-एक व्यक्ति ने 5-10 फॉर्म भरे। मध्य रेल के एक गार्ड ने खुद और अपनी बीवी के नाम कुल 18 फार्म भरे। म्हाडा के इस भारी ऑफर के पीछे जनता इस कदर भागी कि इसके पास पौने पांच लाख आवेदन आ गए।
चूंकि आर्थिक मंदी के चलते लोगों की सैलरी में कटौती हो रही थी, कंपनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रही थी, होम लोन के रेट बढ़ते चले जा रहे थे, कमर्शल बैंकों का भरोसा बिल्डरों पर से उठता जा रहा था, सो बिल्डरों को 16 से 20 प्रतिशत तक की ब्याज दर से लोन मिलने लगा था... कुल मिलाकर यह हुआ कि फ्लैट खरीददारों की जेब ढीली हो गई और बिल्डरों के पास लिक्विडिटी (पैसे) की कमी हो गई। फ्लैट खरीददार न तो बिल्डरों के फ्लैट खरीदने की पोजीशन में थे और ना ही बिल्डर अपने प्रोजेक्ट का काम आगे बढ़ाने की पोजीशन में थे। जिन बिल्डरों के पास होल्डिंग कैपेसिटी थी उन्होंने अपने रेट रोके रखे, मगर जिनके पास पैसे का अभाव था उन्होंने अपने रेट घटाना शुरू कर दिए।
नतीजा यह हुआ कि फरवरी बीतते-बीतते प्रॉपर्टी मार्केट में 20 प्रतिशत तक का करेक्शन आ चुका था। चूंकि सभी पोटैंशियल खरीददारों ने अपना लक म्हाडा के भरोसे रख छोड़ा था, अत: जब तक मई में लॉटरी नहीं निकली तब तक बिल्डरों के यहां इन्क्वायरी लगभग जीरो हो गई थी। अब तक प्रॉपर्टी मार्केट में करेक्शन के साथ-साथ बिल्डर कुछ ऑफर भी लेकर खरीददारों को रिझाने के लिए आ चुके थे। जुलाई तक बड़े-बड़े बिल्डर जो 1-बीएचके जैसे घरों का फार्मूला भूल चुके थे देखते-देखते कई बिल्डर अपने अफोर्डेबल हाउसिंग के कई प्रोजेक्ट लेकर मैदान में कूद पड़े। टाटा, डीएलएफ, पार्श्वनाथ, लैंडक्राफ्ट, जेपी जैसी बड़ी रीयल इस्टेट कंपनियों के अलावा मेफेयर हाउसिंग, रुस्तमजी बिल्डर, लोढ़ा ग्रुप, हावरे बिल्डर्स, रौनक ग्रुप, निर्माण ग्रुप, विजय ग्रुप, हीरानंदानी, नाहर, ऑर्बिट, कल्पतरू, कीस्टोन, ओबेरॉय, रहेजा, एकता, वाधवा, निर्मल ग्रुप, रॉयल पाम जैसे बिल्डर मुम्बई के बिल्डरों ने सस्ते रेट पर बुकिंग शुरू की। मगर जब खरीददारों को यह लगा यहां भी अफोडेर्बल हाउसिंग सुपर-बिल्ट अप पर बेचे जा रहे हैं वे और शहरों से काफी दूर हैं तो खरीददारों का इधर भी मोहभंग हो गया। हां, नाहर ग्रुप को अपने फ्लैटों की बुकिंग पूरी करने में जरूर कामयाबी मिली। बकौल श्री नाहर, हमारे पास फ्लैट बुक कराने वालों की वेटिंग लिस्ट में लाइन लग गई और दो हफ्ते के अंदर हमारे 700 फ्लैट बुक हो गए जो अपने आप में एक रिकार्ड है। रॉयल पॉम बिल्डर्स ने एक-एक करके कई कमशिर्यल सेगमेंट की अफोडेर्बल प्रोजेक्ट लांच कर जरूर काफी हद तक सफलता पाई। बाकी बिल्डर साल भर माथे से पसीना ही पोंछते रहे।
मार्केट की फीकी पड़ती रंगत को निखारने के लिए बिल्डरों ने सरकार के पास गुहार लगाई और सरकार को बजट के बाद जुलाई में स्टिमुलस पैकेज लाना पड़ा। इसमें पहला तो यह कि 10 लाख रुपए तक के लोन के ब्याज में 1 प्रतिशत की कमी, बशर्ते प्रॉपर्टी की कीमत 20 लाख रुपए से ज्यादा न हो। दूसरा यह कि उन प्रोजेक्टों में इनकम टैक्स ऐक्ट 80आईबी के तहत टैक्स में छूट, जिनका कंस्ट्रक्शन मार्च 2007 और मार्च 2008 के बीच शुरू हुआ हो और मार्च 2012 के पहले कंप्लीट हो जाना हो। बस, यहां से फिर से प्रॉपर्टी मार्केट का गिरना बंद हुआ। कई बिल्डरों ने अपने रेट फिर से 10 प्रतिशत तक बढ़ा दिए। जिसका नतीजा यह हुआ कि खरीदारों ने अपने फैसले को फिर से टाल दिया। मगर चूंकि पिछले दिनों कई जमीन के सौदे आसमानी कीमतों पर हुए हैं, अत: लोगों को यह आभास हो रहा है कि प्रॉपर्टी मार्केट फिर से अपनी रफ्तार पकड़ सकता है।

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