
बालेश्वर [उड़ीसा]। भारत की मध्यम दूरी तक मार करने वाली परमाणु क्षमता संपन्न बैलिस्टिक मिसाइल [आईआरबीएम] का पहली बार रात में किया गया परीक्षण इस अभियान के सभी मानकों को पूरा करने में नाकाम रहा।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने अभियान से संबंधित आंकड़ों का गहराई से अध्ययन करने के बाद बताया कि उड़ीसा तट के पास व्हीलर द्वीप पर सोमवार रात किया गया पहला रात्रि परीक्षण सभी इच्छित नतीजों और मानकों को हासिल नहीं कर सका।
देश में निर्मित दो हजार किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि-द्वितीय मिसाइल को बनाने का मकसद सेना की रणनीतिक बल कमान को विपरीत परिस्थितियों में जटिल प्रणाली वाले प्रक्षेपास्त्र संचालित करने का प्रशिक्षण देना है।
सूत्रों ने बताया कि समुचित ढंग से उड़ान भरने और पहले चरण में ठीक ढंग से अलग होने के बाद यह मिसाइल दूसरे चरण में विभाजित होने के दौरान बीच में नाकाम हो गई। हालांकि एकीकृत परीक्षण रेंज [आईटीआर] का सर्वोच्च स्तर इस परीक्षण के परिणामों के बारे में चुप्पी साधे हुए है, लेकिन एक सूत्र ने बताया कि ऐसा लग रहा है कि दूसरे चरण में अलग होने के दौरान मिसाइल अपनी राह से भटक गई।
सूत्रों ने बताया कि रक्षा वैज्ञानिक परीक्षण के विस्तृत विश्लेषण में जुटे हैं ताकि गड़बड़ियों के कारण पता चल सकें। डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने कहा कि हालांकि पहले परीक्षण को मिसाइल को स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड में पूरी तरह कार्यक्षम होने और जरूरत पड़ने पर इसे छोड़ने की क्षमता प्रदान करने की दिशा में अहम माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि चूंकि यह एंड यूजर्स के लिए प्रशिक्षण अभ्यास था, इसलिए सभी को गहन परिस्थितियों में अभियानों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। सूत्रों ने बताया कि सोमवार रात के पूरे घटनाक्रम पर संवेदनशील राडारों, टेलीमेट्री ऑब्जर्वेशन स्टेशन, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक उपकरणों और नौसेना के जहाजों से नजर रखी गई थी।
लगभग 1,000 किग्रा वजन को 2,000 किमी तक ले जाने की क्षमता वाली यह मिसाइल अग्नि श्रृंखला का एक भाग है। श्रृंखला में 700 किमी तक मार करने वाली अग्नि-एक और 3,500 किमी क्षमता वाली अग्नि-तीन शामिल है। अग्नि-एक को पहले ही सेवा में शामिल किया जा चुका है और अग्नि-तीन को शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है। अग्नि-दो का पहला परीक्षण 11 अप्रैल, 1999 को और पिछला परीक्षण 19 मई, 2009 को किया गया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें