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मंगलवार, 16 नवंबर 2010

जितना बड़ा ध्यान रूपी बर्तन लेकर आओगे उतना ही ज्यादा ज्ञान रूपी पानी लेकर जाओगे-साध्वी प्रज्ञा

डबवाली- नैतिक शिक्षा के मद्दे नज़र बच्चों के आंतरिक तथा व्यवहारिक गुणों के विकास हेतु आज स्थानीय हरियाणा पब्लिक स्कूल में तेरापंथ की साध्वी सामणी विनीत प्रज्ञा और साध्वी शारदा प्रज्ञा के तत्त्वाधान में प्रात: स्मरणीय सभा का आयोजन किया गया। जिसमें सामणी शारदा प्रज्ञा के भजन श्रेष्ठ बालक के द्वारा सभी बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए किस प्रकार की मनोस्थिति होनी चाहिए तथा कैसा स्वभाव होना चाहिए पुस्तकों से किस प्रकार से स्नेह मित्रता होनी चाहिए का पाठ पढ़ाया। तदोपरान्त सामणी विनीत प्रज्ञा ने बच्चों को दैनिक की जाने वाली ऐसी क्रियाओं का अभ्यास करवाया। जिससे कि उनकी केवल स्मरण शक्ति का विकास होगा अपितु क्रोध पर भी नियंत्रण होगा। इसके साथ-ही-साथ वे अपने अध्यापकों के किस प्रकार चहेते विद्यार्थी बन जाऐंगे। उन्होंने कहा कि बाल्यावस्था जीवन में सबसे अधिक अॢजत करने की अवस्था है। बचपन में याद किया गया पाठ सदा याद रहता है। उन्होंने कहा कि स्कूल एक ज्ञान रूपी समुद्र की भांति होता है। समुद्र से आपको नित्य पानी लेकर जाना है और आज जितना बड़ा ध्यान रूपी बर्तन लेकर आओगे उतना ही ज्यादा ज्ञान रूपी पानी लेकर जाओगे। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को विशेष रूप से नित्य प्रति सोते वक्त कुछ नियमों को दोहरा कर सोना चाहिए जैसे कि मैं सदैव बड़ों का सम्मान करूंगा, मैं सदैव अच्छी संगत करूंगा, टी.वी. में किसी प्रकार हिसांत्मक सीरियल आदि नहीं देखूंगा। क्योंकि सोते समय यदि अच्छे विचार करके सोया जाए तो जहां स्वास्थ्य अच्छा होता है वहीं इच्छा शक्ति भी दृढ़ होती है। उन्होंने बच्चों की श्वास प्रक्रिया का अभ्यास करवाते हुए बताया कि हम सामान्य प्रक्रिया में जितनी कम सांस लेते हैं उतनी ज्यादा आक्सीजन अंदर जाऐगी और कार्बनडाइऑक्साइड भी अधिक बाहर आऐगी। इसी प्रकार उन्होंने बताया की एक मिनट में कम-से-कम सांस लेने की आदत डालनी चाहिए और इसका बार-बार अभ्यास भी बच्चों को करवाया। डॉ. सीमा गुप्ता ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि संस्कार युक्त शिक्षा से ही जीवन का की दिशा दशा निर्धारित करती है जिसके लिए एचपीएस के प्रयास केवल सराहणीय है अपितु प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि बच्चों के विकास के लिए जहां 50 प्रतिशत योगदान अध्यापकों का है तो 50 प्रतिशत अभिभावकों का भी है। उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे महानुभावों साधु संतो के प्रवचन नि:संदेह बच्चों के अंदर जीवन निर्माण की दिशा में अहम् भूमिका निभाते हैं।

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