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रविवार, 3 अक्टूबर 2010

आज भी घर की छतों पर चढ़कर मिलाना पड़ता है मोबाइल

बड़ागुढ़ा, 3 अक्टूबर। आज भी लोग घरों की छत पर चढ़कर मोबाईल से बात करते हैं। जी हां संचार क्रांति के इस युग में यह सब सुनकर आपको अटपटा लग रहा होगा, लेकिन यह बात बिल्कुल सच है कि अनेक गांवों में सरकारी दूरसंचार कम्पनी बीएसएनएल का नेटवर्क ही नहीं आता और लोगों को फोन मिलाने के लिए घरों की छतों पर चढ़कर बात करने पर मजबूर होना पड़ता है। घर में आए मेहमानों के सामने तो ग्रामीणों की और भी फजीहत होती है, जब वे उन पर नेटवर्क न होने का टोंट मारते हैं और बीएसएनल का सिम ही बदलाने की सलाह देने लगते हैं। एक समय था जब बीएसएनल की पूरी रेंज होती थी और कम्पनी द्वारा कैम्प लगाकर लोगों को सिम उपलब्ध करवाया जाता था। ग्रामीणों के विश्वास के कारण ही कैम्प में हाथों-हाथ सिम बिक जाते और वंचित ग्रामीणों ने ब्लैक में बीएसएनएल के सिम खरीदे व अधिकारियों पर भी अपने चहेतों को ही सिम देने के आरोप भी लगाए जाते। आज स्थिति ये है कि नेटवर्क न आने से ग्रामीण मजबूर होकर अपना सिम तोड़कर फैंकने को मजबूर हो गए हैं। ग्रामीणों ने कम्पनी पर यह भी आरोप लगाया कि अधिकारी प्राईवेट कम्पनियों से मिलीभगत कर अपनी ही कम्पनी को नुकसान पहुंचा रहे हैं ताकि ग्रामीण अन्य प्राईवेट कम्पनियों के सिम खरीदकर उन्हें लाभ पहुंचा सकें। ग्रामीण बताते कि गांव बप्पां के में तीन साल पहले बीएसएनएल का टावर लगाया गया था, लेकिन आज तक उसे आरंभ ही नहीं किया तथा जब ग्रामीणों द्वारा निगम के अधिकारियों से बाती की जाती है तो वे इसे एरिया मैनेजर की जिम्मेदारी बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। इसी प्रकार ऐरिया मैनेजर से बात करने पर वह किसी ओर की जिम्मेदारी बताकर पतली गली से सरकने की कोशिश मेें लगे रहते हैं। बीएसएनएल के अधिकारियों का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब प्रतियोगिता के इस दौर में लोग बीएसएनएल से पूरी तरह से मुंह मोड़ लेंगे।

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